'गोत्र' तथा 'अल्ल'
'गोत्र' तथा 'अल्ल' के अर्थ तथा महत्व संबंधी प्रश्न राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद् का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष होने के नाते मुझसे भी पूछे जाते हैं.
स्कन्दपुराण में वर्णित श्री चित्रगुप्त प्रसंग के अनुसार उनके बारह पत्रों को बारह ऋषियों के पास विविध विषयों की शिक्षा हेतु भेजा गया था. इन से ही कायस्थों की बारह उपजातियों का श्री गणेश हुआ. ऋषियों के नाम ही उनके शिष्यों के गोत्र हुए. इसी कारण विभिन्न जातियों में एक ही गोत्र मिलता है चूंकि ऋषि के पास विविध जाती के शिष्य अध्ययन करते थे. आज कल जिस तरह मॉडल स्कूल में पढ़े विद्यार्थी 'मोडेलियन' रोबेर्त्सों कोलेज में पढ़े विद्यार्थी 'रोबर्टसोनियन' आदि कहलाते हैं, वैसे ही ऋषियों के शिष्यों के गोत्र गुरु के नाम पर हुए. आश्रमों में शुचिता बनाये रखने के लिए सभी शिष्य आपस में गुरु भाई तथा गुरु बहिनें मानी जाती थीं. शिष्य गुरु के आत्मज (संततिवत) मान्य थे. अतः, उनमें आपस में विवाह वर्जित होना उचित ही था.
एक 'गोत्र' के अंतर्गत कई 'अल्ल' होती हैं. 'अल्ल' कूट शब्द (कोड) या पहचान चिन्ह है जो कुल के किसी प्रतापी पुरुष, मूल स्थान, आजीविका, विशेष योग्यता, मानद उपाधि या अन्य से सम्बंधित होता है. एक 'अल्ल' में विवाह सम्बन्ध सामान्यतया वर्जित मन जाता है किन्तु आजकल अधिकांश लोग अपने 'अल्ल' की जानकारी नहीं रखते. हमारा गोत्र 'कश्यप' है जो अधिकांश कायस्थों का है तथा उनमें आपस में विवाह सम्बन्ध होते हैं. हमारी अगर'' 'उमरे' है. मुझे इस अल्ल का अब तक केवल एक अन्य व्यक्ति मिला है. मेरे फूफा जी की अल्ल 'बैरकपुर के भले' है. उनके पूर्वज बैरकपुर से नागपुर जा बसे.
'गोत्र' तथा 'अल्ल' के अर्थ तथा महत्व संबंधी प्रश्न राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद् का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष होने के नाते मुझसे भी पूछे जाते हैं.
स्कन्दपुराण में वर्णित श्री चित्रगुप्त प्रसंग के अनुसार उनके बारह पत्रों को बारह ऋषियों के पास विविध विषयों की शिक्षा हेतु भेजा गया था. इन से ही कायस्थों की बारह उपजातियों का श्री गणेश हुआ. ऋषियों के नाम ही उनके शिष्यों के गोत्र हुए. इसी कारण विभिन्न जातियों में एक ही गोत्र मिलता है चूंकि ऋषि के पास विविध जाती के शिष्य अध्ययन करते थे. आज कल जिस तरह मॉडल स्कूल में पढ़े विद्यार्थी 'मोडेलियन' रोबेर्त्सों कोलेज में पढ़े विद्यार्थी 'रोबर्टसोनियन' आदि कहलाते हैं, वैसे ही ऋषियों के शिष्यों के गोत्र गुरु के नाम पर हुए. आश्रमों में शुचिता बनाये रखने के लिए सभी शिष्य आपस में गुरु भाई तथा गुरु बहिनें मानी जाती थीं. शिष्य गुरु के आत्मज (संततिवत) मान्य थे. अतः, उनमें आपस में विवाह वर्जित होना उचित ही था.
एक 'गोत्र' के अंतर्गत कई 'अल्ल' होती हैं. 'अल्ल' कूट शब्द (कोड) या पहचान चिन्ह है जो कुल के किसी प्रतापी पुरुष, मूल स्थान, आजीविका, विशेष योग्यता, मानद उपाधि या अन्य से सम्बंधित होता है. एक 'अल्ल' में विवाह सम्बन्ध सामान्यतया वर्जित मन जाता है किन्तु आजकल अधिकांश लोग अपने 'अल्ल' की जानकारी नहीं रखते. हमारा गोत्र 'कश्यप' है जो अधिकांश कायस्थों का है तथा उनमें आपस में विवाह सम्बन्ध होते हैं. हमारी अगर'' 'उमरे' है. मुझे इस अल्ल का अब तक केवल एक अन्य व्यक्ति मिला है. मेरे फूफा जी की अल्ल 'बैरकपुर के भले' है. उनके पूर्वज बैरकपुर से नागपुर जा बसे.
अच्छी जानकारी।
ReplyDeleteगोत्र का अर्थ 'निवासी' होता है, यह लैटिन भाषा के शब्द cotarius से बना है. अतः गोत्र वही होता है जो व्यक्ति का कभी मूल गाँव हुआ करता था अर्थात जहाँ उसके पूर्वज आरंभ में बसे थे. यह प्रथा सभी जातियों तथा उपजातियों में है. समयांतराल के कारण बहुत से गाँव उजाड़ गये हैं तथा गोत्र नाम विकृत हो गये हैं जिससे उन्हें मूल गाँव से संबद्ध करना कठिन हो गया है.
ReplyDeleteहो सकता है प्रारंभ में गोत्र का अर्थ निवासी से रहा हो किन्तु वर्तमान में कायस्थों, ब्राम्हणों, क्षत्रियों तथा विषयों में कई गोत्र एक जैसे हैं तथा ऋषियों के नाम पर हैं. कश्यप, गौतम, भारद्वाज, दालभ्य आदि ग्प्त्र ऋषियों के नाम पर ही हैं.
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Deleteगोत्र का इतिहास
जातिवादी सामाजिक व्यवस्था की खासियत ही यही रही कि इसमें हर समूह को एक खास पहचान मिली। हिन्दुओं में गोत्र होता है जो किसी समूह के प्रवर्तक अथवा प्रमुख व्यक्ति के नाम पर चलता है। सामान्य रूप से गोत्र का मतलब कुल अथवा वंश परंपरा से है। यह जानना दिलचस्प होगा कि आज जिस गोत्र का संबंध जाति-वंश-कुल से जुड़ रहा है , सदियों पहले यह इस रूप में प्रचलित नहीं था। गोत्र तब था गोशाला या गायों का समूह। दरअसल संस्कृत में एक धातु है त्रै-जिसका अर्थ है पालना , रक्षा करना और बचा
ना आदि। गो शब्द में त्रै लगने से जो मूल अर्थ प्रकट होता है जहां गायों को शरण मिलती है, जाहिर है गोशाला मे। इस तरह गोत्र शब्द चलन में आया।
गौरतलब है कि ज्यादातर और प्रचलित गोत्र ऋषि-मुनियों के नाम पर ही हैं जैसे भारद्वाज-गौतम आदि मगर ऐसा क्यों ? इसे यूं समझें कि प्राचीनकाल में ऋषिगण विद्यार्थियों पढ़ाने के लिए गुरुकुल चलाते थे। इन गुरूकुलों में खान-पान से जुड़ी व्यवस्था के लिए बड़ी-बड़ी गोशालाएं होती थीं जिनकी देखभाल का काम भी विद्यार्थियों के जिम्मे होता था। ये गायें इन गुरुकुलों में दानस्वरूप आती थीं और बड़ी तादाद में पलती थीं। गुरुकुलों के इन गोत्रो में समाज के विभिन्न वर्ग भी दान-पुण्य के लिए पहुंचते थे। कालांतर में गुरूकुल के साथ साथ गोशालाओं को ख्याति मिलने लगी और ऋषिकुल के नाम पर उनके भी नाम चल पड़े। बाद में उस कुल में पढ़ने वाले विद्यार्थियों और समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों ने भी अपनी पहचान इन गोशालाओं यानी गोत्रों से जोड़ ली जो सदियां बीत जाने पर आज भी बनी हुई है।
एक तरफ पुस्तकों में पंडितो ये दिखने की कोसिस की है की सब हिन्दू ऋषि पुत्र हैं (ब्राहमणों की संतान ) तो दूसरी तरफ यही ब्राहमण समाज को जातिवाद के कुचक्रो में धकेल दिया ,समाज के एक वर्ग को अपमानित किया जाने लगा ,, मुझे तो ये धार्मिक पुस्तके पंडितो के ढोग पोंग और कपोल कल्पना ही लगती है
Useful information.
DeleteVishal Varma
We are taking it for our March Issue-2010.
ReplyDeletePeople want to know abut it.
Subject is taken is very good and informative
thanks
anuj kumar
kayastha parivar
गोत्र और अल्ल में क्या अंतर है ये मैं भी काफी दिन से जानना चाहता था.आज इस का उत्तर मिल गया.
ReplyDelete'गोत्र' तथा 'अल्ल'
Delete'गोत्र' तथा 'अल्ल' के अर्थ तथा महत्व संबंधी प्रश्न राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद् का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष होने के नाते मुझसे भी पूछे जाते हैं.
स्कन्दपुराण में वर्णित श्री चित्रगुप्त प्रसंग के अनुसार उनके बारह पत्रों को बारह ऋषियों के पास विविध विषयों की शिक्षा हेतु भेजा गया था. इन से ही कायस्थों की बारह उपजातियों का श्री गणेश हुआ. ऋषियों के नाम ही उनके शिष्यों के गोत्र हुए. इसी कारण विभिन्न जातियों में एक ही गोत्र मिलता है चूंकि ऋषि के पास विविध जाती के शिष्य अध्ययन करते थे. आज कल जिस तरह मॉडल स्कूल में पढ़े विद्यार्थी 'मोडेलियन' रोबेर्त्सों कोलेज में पढ़े विद्यार्थी 'रोबर्टसोनियन' आदि कहलाते हैं, वैसे ही ऋषियों के शिष्यों के गोत्र गुरु के नाम पर हुए. आश्रमों में शुचिता बनाये रखने के लिए सभी शिष्य आपस में गुरु भाई तथा गुरु बहिनें मानी जाती थीं. शिष्य गुरु के आत्मज (संततिवत) मान्य थे. अतः, उनमें आपस में विवाह वर्जित होना उचित ही था.
एक 'गोत्र' के अंतर्गत कई 'अल्ल' होती हैं. 'अल्ल' कूट शब्द (कोड) या पहचान चिन्ह है जो कुल के किसी प्रतापी पुरुष, मूल स्थान, आजीविका, विशेष योग्यता, मानद उपाधि या अन्य से सम्बंधित होता है. एक 'अल्ल' में विवाह सम्बन्ध सामान्यतया वर्जित मन जाता है किन्तु आजकल अधिकांश लोग अपने 'अल्ल' की जानकारी नहीं रखते. हमारा गोत्र 'कश्यप' है जो अधिकांश कायस्थों का है तथा उनमें आपस में विवाह सम्बन्ध होते हैं. हमारी अगर'' 'उमरे' है. मुझे इस अल्ल का अब तक केवल एक अन्य व्यक्ति मिला है. मेरे फूफा जी की अल्ल 'बैरकपुर के भले' है. उनके पूर्वज बैरकपुर से नागपुर जा बसे
आपकी जानकारी अतुल्य है। लेकिन कृपया यह बताएं कि क्या कायस्थ वर्ण की 12 जातियो का गोत्र एक ही है या अलग, यदि अलग है तो कृपया अलग अलग सबके उपजातियो के अनुसार नाम बताएं।
ReplyDeleteअगर संभव हो तो मुझे ई मेल के माध्यम से जानकारी देँ।
prashantveer.88@gmail.com
Silalpuriya gotta kis caste me ata hai
Deleteसभी चित्रगुप्त कायस्थों ( सभी १२ पुत्रों का) का गोत्र कश्यप है . यद्यपि चित्रसेनीय कायस्थों (बंगाली और महारास्ट्र के कायस्थों) का गोत्र बगदालिया है .
ReplyDeleteadarsh_kumar_khare@yahoo.com
चित्रसेनीय नही मित्र,चंद्रसेनीय।
Deleteगोत्र का इतिहास
ReplyDeleteजातिवादी सामाजिक व्यवस्था की खासियत ही यही रही कि इसमें हर समूह को एक खास पहचान मिली। हिन्दुओं में गोत्र होता है जो किसी समूह के प्रवर्तक अथवा प्रमुख व्यक्ति के नाम पर चलता है। सामान्य रूप से गोत्र का मतलब कुल अथवा वंश परंपरा से है। यह जानना दिलचस्प होगा कि आज जिस गोत्र का संबंध जाति-वंश-कुल से जुड़ रहा है , सदियों पहले यह इस रूप में प्रचलित नहीं था। गोत्र तब था गोशाला या गायों का समूह। दरअसल संस्कृत में एक धातु है त्रै-जिसका अर्थ है पालना , रक्षा करना और बचा
ना आदि। गो शब्द में त्रै लगने से जो मूल अर्थ प्रकट होता है जहां गायों को शरण मिलती है, जाहिर है गोशाला मे। इस तरह गोत्र शब्द चलन में आया।
गौरतलब है कि ज्यादातर और प्रचलित गोत्र ऋषि-मुनियों के नाम पर ही हैं जैसे भारद्वाज-गौतम आदि मगर ऐसा क्यों ? इसे यूं समझें कि प्राचीनकाल में ऋषिगण विद्यार्थियों पढ़ाने के लिए गुरुकुल चलाते थे। इन गुरूकुलों में खान-पान से जुड़ी व्यवस्था के लिए बड़ी-बड़ी गोशालाएं होती थीं जिनकी देखभाल का काम भी विद्यार्थियों के जिम्मे होता था। ये गायें इन गुरुकुलों में दानस्वरूप आती थीं और बड़ी तादाद में पलती थीं। गुरुकुलों के इन गोत्रो में समाज के विभिन्न वर्ग भी दान-पुण्य के लिए पहुंचते थे। कालांतर में गुरूकुल के साथ साथ गोशालाओं को ख्याति मिलने लगी और ऋषिकुल के नाम पर उनके भी नाम चल पड़े। बाद में उस कुल में पढ़ने वाले विद्यार्थियों और समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों ने भी अपनी पहचान इन गोशालाओं यानी गोत्रों से जोड़ ली जो सदियां बीत जाने पर आज भी बनी हुई है।
एक तरफ पुस्तकों में पंडितो ये दिखने की कोसिस की है की सब हिन्दू ऋषि पुत्र हैं (ब्राहमणों की संतान ) तो दूसरी तरफ यही ब्राहमण समाज को जातिवाद के कुचक्रो में धकेल दिया ,समाज के एक वर्ग को अपमानित किया जाने लगा ,, मुझे तो ये धार्मिक पुस्तके पंडितो के ढोग पोंग और कपोल कल्पना ही लगती है
ReplyDeleteधन्यवाद् अल्ल पर अगर किसी को और कुछ जानकारी हो तो कृपया लिखे।
ReplyDeletewhat is my gotra my surname is srivastava
ReplyDeleteMy Surname is Shrivastava .But my Gotra is Chakradhar.My fore father's were from Chakradharpur Bihar now Jhakhand &settled in Bhopal Udaipura now in Raisen Distt.some Eight Generations before
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमेरी जानकारी में गोत्र क्या खेड़ा स्थान विशेष के समुदायों द्वारा अपनाया गया गोत्र जाना जाता रहा जो जिस स्थान मूल निवासी थे उन्होंने अपनी पहचान बनाने के लिए उसी स्थान को लेकर अपना गोत्र स्वीकार किया एक स्थान की सभी संताने एक मूल पूर्वज की होने के कारण भाई-बहन जैसा संबंध मानते हुए उसी गोत्र में संबंध से बचने के लिए कुश गोत्र की जानकारी रखते हुए शादी संबंध किए जाते रहे
ReplyDeleteकृप्या मेरा गोत्र बताये मेरा नाम योगेश सक्सेना है मेरी id है yogeshteacher@gmail.com
ReplyDeleteTumhara gotra Saxena. hai hastivarnd
Deleteबहुत समय के बाद अल का अर्थ मालूम पड़ा कृपया सक्सेना की 106 अल है अगर उनकी पूरी सूची हो तो rubarunews2015@gmail.com पर भेजने की कृपा करें धन्यवाद
ReplyDeleteअगर आपके पास सूची आ गई हो तो कृपया 106 अल की सूची मुझे भी भेजने का कष्ट करें
Deleteभाई जी एक मदद चाहिए, आप बता सकते है कि sikroriya ब्राह्मण कोनसे ब्राह्मण होते है? कृपया रिप्लाई दे
Delete106 अल्ल की सूची कृपया मुझे भी उपलब्ध करायें
Deleteकृपया सक्सेना अल्ल जौहरी
ReplyDeleteकी कुलदेवी का नाम बतायें
शाकुंभरी देवी,स्थान निकट सहरानपुर उत्तरप्रदेश
Deleteमेरा आशीष सक्सेना , गोत्र कश्यप है और अल्ल बरतरिया है। बरतरिया अल्ल से संबंधी यही कोई जानकारी हो तो शेयर करे। जैसा कि मुझे मालूम है हमारी कुलदेवी शाकुंभरी देवी है। उत्तरप्रदेश में सहारनपुर के पास इनका स्थान है। मेरा व्हाट्स एप्प 9557666387 है । आप इस पर जानकारी शेयर कर सकते है
ReplyDeleteभटनागर अल् कजलोठिया कुलदेवी कौन हैं भटनागर अल डसनिया कुलदेवी कौन है।
ReplyDeleteI m Aditya Saxena plz muje ye btao jo log Saxena me darji likhte hai unke darji ke aage kya likhte hai unko अल kya hai plz help me
ReplyDeleteMera nam alok saxena hai Meri all sirbahi hai gotta kya hoga
ReplyDeleteMera naam vedant Srivastava hai mera gotra kya hai
ReplyDeleteMera Naam suraj kumar sinha hai mujhe apne gotra aur kuldevi ke naam batane ki kripa kare.
ReplyDeleteमेरा नाम विनोद कुमार खरे पिता का नाम श्री राम बाबू खरे दादा जी का नाम रघुवीर सहाय एवम परदादा जी का नाम भुजबल सहाय मूल रूप से दबोह तहसील लहार जिला भिंड के निवासी है मेरी जानकारी इतनी ही अगर सम्भव हो सके तो मेरा गोत्र एवम खेरा बताने की कृपा करें
ReplyDeleteमैं हिमांशु श्रीवास्तव हरचंदपुर जिला रायबरेली हमारा मूल स्थान है कृपया मेरी कुलदेवी और कुलदेव बताएं 🙏
ReplyDeleteमेरा नाम धर्मेंद्र खरे है। मै अपना गौत्र और कुलदेवी के बारे मे जानना चहता हूं कृपया मुझे उचित जानकारी प्रदान करे।
ReplyDeletemob 7898318831
Puneet Shrivastava s/0 badri prasad s/0 Komal prasad s/0 murlidhar Shrivastav s/o mandammohanlal Shrivastava s/o khemchand s/o noneetrai Shrivastava
ReplyDeleteGotra bhardwaj
Thikana Lashkarpur teshsil and district vidisha madhya Pradesh m nivasrat hai..kripya mool sthan aur kuldevi bataye
mera naam Ankita Srivastava hai..krpya mujhe meri kuldevi or gotra btane ki kripa kare
ReplyDeletejagh jila btye apna
ReplyDeleteMera nam priya saxena hai. Mera gotra kudeshiya hai. Hamari kuldevi kon hogi
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