गीत:
संजीव 'सलिल'
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अपना हर पल है हिन्दीमय एक दिवस क्या खाक मनाएँ?
बोलें-लिखें नित्य अंग्रेजी जो वे एक दिवस जय गाएँ...
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निज भाषा को कहते पिछडी. पर भाषा उन्नत बतलाते.
घरवाली से आँख फेरकर देख पडोसन को ललचाते.
ऐसों की जमात में बोलो, हम कैसे शामिल हो जाएँ?...
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हिंदी है दासों की बोली, अंग्रेजी शासक की भाषा.
जिसकी ऐसी गलत सोच है, उससे क्या पालें हम आशा?
इन जयचंदों की खातिर हिंदीसुत पृथ्वीराज बन जाएँ...
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ध्वनिविज्ञान- नियम हिंदी के शब्द-शब्द में माने जाते.
कुछ लिख, कुछ का कुछ पढने की रीत न हम हिंदी में पाते.
वैज्ञानिक लिपि, उच्चारण भी शब्द-अर्थ में साम्य बताएँ...
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अलंकार, रस, छंद बिम्ब, शक्तियाँ शब्द की बिम्ब अनूठे.
नहीं किसी भाषा में मिलते, दावे करलें चाहे झूठे.
देश-विदेशों में हिन्दीभाषी दिन-प्रतिदिन बढ़ते जाएँ...
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अन्तरिक्ष में संप्रेषण की भाषा हिंदी सबसे उत्तम.
सूक्ष्म और विस्तृत वर्णन में हिंदी है सर्वाधिक सक्षम.
हिंदी भावी जग-वाणी है निज आत्मा में 'सलिल' बसाएँ...
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Wednesday, September 15, 2021
Sunday, September 12, 2021
स्वागत गीत
गीत सम्राट राकेश खंडेलवाल की दौहित्री आहना के स्वागत में-
गीत
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एक नन्हीं परी का धरा अवतरण
पर्व उल्लास का ऐ परिंदो! उड़ो
कलरवों से गुँजा दो दिशाएँ सभी
लक्ष्य पाए बिना तुम न पीछे मुड़ो
ऐ सलिल धार कलकल सुनाओ मधुर
हो लहर का लहर से मिलन रात-दिन
झूम गाओ पवन गीत सोहर अथक
पर्ण दो ताल, कलियाँ नचें ताक धिन
ऐ घटाओं गगन से उतर आओ री!
छाँह पल-पल करो, वृष्टि कर स्नेह की
रश्मि ऊषा लिए भाल पर कर तिलक
दुपहरी से कहे आज जी जिंदगी
साँझ हो पुरनमी, हो नशीली निशा
आहना के कोपलों का चुंबन करे
आह ना एक भी भाग्य में हो लिखी
कहकहों की कहकशा निछावर करे
चाँदनी कज्जरी दे डिठौना लगा
धूप नजरें उतारे विहँस रूप की
नाच राकेश रवि को लिए साथ में
ईश को शत नमन पूर्ण आकांक्षा की
देख मुखड़ा नया नित्य मुखड़ा बने
अंतरा अंतरा गीत सलिला बहे
आहना मुस्कुरा नव ऋचाएँ रचे
खिलखिला मन हरे, नव कहानी कहे
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संजीव
९४२५१८३२४४
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