Wednesday, December 30, 2009

कायस्थ परिवार पत्रिका

कायस्थ परिवार की एक पत्रिका प्रिंट फॉर्म मे पिछले ७५ सालो से प्रकशित हो रही हैं पत्रिका को श्री आर सी श्रीवास्तव जी चलाते थे और गत वर्ष उनका निधन हो गया हैं अब इस पत्रिका को उनके बेटे श्री अनुज कुमार जारी रखना चाहते हैं
इस पत्रिका मे हिन्दी और इंग्लिश के लेख छपते हैं आप ब्लॉगर मे से जो भी कायस्थ ब्लॉगर अपनी कृतियाँ इस पत्रिका मे देना चाहता हैं वो अपना आलेख अनुज को kayasthaparivar@yahoo.com पर भेज सकते हैं कोई भी पैसा इस कार्य के लिये नहीं दिया जा सकता हैं क्युकी पत्रिका बिना किसी अनुदान के एक परिवार के अथक परिश्रम से चल रही हैं
पत्रिका के सम्पादक का पता हैं
Kayastha Parivar, A-13, Brij Vihar, Gaziabad(U.P.) Ph.: 0120-३०१९०२८
आप सीधा उनसे संपर्क करके इस पत्रिका के लिये अपनी बहुमूल्य रचनाये भेज सकते हैं

इस के अलावा आप मे से वो जितने भी कायस्थ मित्र इस ब्लॉग से जुड़ कर अपने चुने हुए लेख इस पर देना चाहे वो कमेन्ट मे मुझ से संपर्क कर सकते हैं । उसके पश्चात आप जो भी पोस्ट यहाँ पुब्लिश करेगे वो पत्रिका के अगले अंक मे अपने आप आ जायेगे ।

लेख हिन्दी और इंग्लिश दोनों मे चाहिये । जो लोग कायस्थ समाज से जुड़ना चाहते हैं वो भी श्री अनुज कुमर जी से संपर्क कर सकते हैं । इस पत्रिका की वेब साईट का लिंक भी हैं आप देखे और अपना सहयोग दे
धन्यवाद
रचना

नव वर्ष पर नवगीत: महाकाल के महाग्रंथ का --संजीव 'सलिल'

नव वर्ष पर नवगीत



संजीव 'सलिल'

*

महाकाल के महाग्रंथ का

नया पृष्ठ फिर आज खुल रहा....

*

काटोगे,

जो बोया है.

वह पाओगे,

जो खोया है.

सत्य-असत, शुभ-अशुभ तुला पर

कर्म-मर्म सब आज तुल रहा....

*

खुद अपना

मूल्यांकन कर लो.

निज मन का

छायांकन कर लो.

तम-उजास को जोड़ सके जो

कहीं बनाया कोई पुल रहा?...

*

तुमने कितने

बाग़ लगाये?

श्रम-सीकर

कब-कहाँ बहाए?

स्नेह-सलिल कब सींचा?

बगिया में आभारी कौन गुल रहा?...

*

स्नेह-साधना करी

'सलिल' कब.

दीन-हीन में

दिखे कभी रब?

चित्रगुप्त की कर्म-तुला पर

खरा कौन सा कर्म तुल रहा?...

*

खाली हाथ

न रो-पछताओ.

कंकर से

शंकर बन जाओ.

ज़हर पियो, हँस अमृत बाँटो.

देखोगे मन मलिन धुल रहा...

**********************
http://divyanarmada.blogspot.com

Sunday, December 27, 2009

नव वर्ष पर नवगीत: महाकाल के महाग्रंथ का -संजीव 'सलिल'

नव वर्ष पर नवगीत


संजीव 'सलिल'

महाकाल के महाग्रंथ का

नया पृष्ठ फिर आज खुल रहा....

*

वह काटोगे,

जो बोया है.

वह पाओगे,

जो खोया है.

सत्य-असत, शुभ-अशुभ तुला पर

कर्म-मर्म सब आज तुल रहा....

*

खुद अपना

मूल्यांकन कर लो.

निज मन का

छायांकन कर लो.

तम-उजास को जोड़ सके जो

कहीं बनाया कोई पुल रहा?...

*

तुमने कितने

बाग़ लगाये?

श्रम-सीकर

कब-कहाँ बहाए?

स्नेह-सलिल कब सींचा?

बगिया में आभारी कौन गुल रहा?...

*

स्नेह-साधना करी

'सलिल' कब.

दीन-हीन में

दिखे कभी रब?

चित्रगुप्त की कर्म-तुला पर

खरा कौन सा कर्म तुल रहा?...

*

खाली हाथ?

न रो-पछताओ.

कंकर से

शंकर बन जाओ.

ज़हर पियो, हँस अमृत बाँटो.

देखोगे मन मलिन धुल रहा....

**********************

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

सामयिक दोहे संजीव 'सलिल'

सामयिक दोहे




संजीव 'सलिल'


पत्थर से हर शहर में मिलते मकां हजारों.



मैं ढूंढ-ढूंढ हरा, घर एक नहीं मिलता..



रश्मि रथी की रश्मि के दर्शन कर जग धन्य.



तुम्हीं चन्द्र की ज्योत्सना, सचमुच दिव्य अनन्य..



राज सियारों का हुआ, सिंह का मिटा भविष्य.



लोकतंत्र के यज्ञ में, काबिल हुआ हविष्य..



कहता है इतिहास यह, राक्षस थे बलवान.



जिसने उनको मिटाया, वे सब थे इंसान..



इस राक्षस राठोड का होगा सत्यानाश.



साक्षी होंगे आप-हम, धरती जल आकाश..



नारायण के नाम पर, सचमुच लगा कलंक.



मैली चादर हो गयी, चुभा कुयश का डंक..



फंसे वासना पंक में, श्री नारायण दत्त.



जैसे मरने जा रहा, कीचड में गज मत्त.



कीचड में गज मत्त, लाज क्यों इन्हें न आयी.



कभी उठाई थी चप्पल. अब चप्पल खाई..



******************



Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

Thursday, December 24, 2009

'बड़ा दिन' --संजीव 'सलिल'

'बड़ा दिन'


संजीव 'सलिल'

हम ऐसा कुछ काम कर सकें

हर दिन रहे बड़ा दिन अपना.

बनें सहायक नित्य किसी के-

पूरा करदें उसका सपना.....

*

केवल खुद के लिए न जीकर

कुछ पल औरों के हित जी लें.

कुछ अमृत दे बाँट, और खुद

कभी हलाहल थोडा पी लें.

बिना हलाहल पान किये, क्या

कोई शिवशंकर हो सकता?

बिना बहाए स्वेद धरा पर

क्या कोई फसलें बो सकता?

दिनकर को सब पूज रहे पर

किसने चाहा जलना-तपना?

हम ऐसा कुछ काम कर सकें

हर दिन रहे बड़ा दिन अपना.....

*

निज निष्ठा की सूली पर चढ़,

जो कुरीत से लड़े निरंतर,

तन पर कीलें ठुकवा ले पर-

न हो असत के सम्मुख नत-शिर.

करे क्षमा जो प्रतिघातों को

रख सद्भाव सदा निज मन में.

बिना स्वार्थ उपहार बाँटता-

फिरे नगर में, डगर- विजन में.

उस ईसा की, उस संता की-

'सलिल' सीख ले माला जपना.

हम ऐसा कुछ काम कर सकें

हर दिन रहे बड़ा दिन अपना.....

*

जब दाना चक्की में पिसता,

आटा बनता, क्षुधा मिटाता.

चक्की चले समय की प्रति पल

नादां पिसने से घबराता.

स्नेह-साधना कर निज प्रतिभा-

सूरज से कर जग उजियारा.

देश, धर्म, या जाति भूलकर

चमक गगन में बन ध्रुवतारा.

रख ऐसा आचरण बने जो,

सारी मानवता का नपना.

हम ऐसा कुछ काम कर सकें

हर दिन रहे बड़ा दिन अपना.....

*

(भारत में क्रिसमस को 'बड़ा दिन' कहा जाता है.)

http://divyanarmada.blogspot.com

Tuesday, December 22, 2009

स्मृति दीर्घा: संजीव 'सलिल'

स्मृति दीर्घा:

संजीव 'सलिल'

*

स्मृतियों के वातायन से, झाँक रहे हैं लोग...

*

पाला-पोसा खड़ा कर दिया, बिदा हो गए मौन.

मुझमें छिपे हुए हुए है, जैसे भोजन में हो नौन..

चाहा रोक न पाया उनको, खोया है दुर्योग...

*

ठोंक-ठोंक कर खोट निकली, बना दिया इंसान.

शत वन्दन उनको, दी सीख 'न कर मूरख अभिमान'.

पत्थर परस करे पारस का, सुखमय है संयोग...

*

टाँग मार कर कभी गिराया, छुरा पीठ में भोंक.

जिनने अपना धर्म निभाया, उन्नति पथ को रोक.

उन का आभारी, बचाव के सीखे तभी प्रयोग...

*

मुझ अपूर्ण को पूर्ण बनाने, आई तज घर-द्वार.

कैसे बिसराऊँ मैं उनको, वे मेरी सरकार.

मुझसे मुझको ले मुझको दे, मिटा रहीं हर सोग...

*

बिन शर्तों के नाते जोड़े, दिया प्यार निष्काम.

मित्र-सखा मेरे जो उनको सौ-सौ बार सलाम.

दुःख ले, सुख दे, सदा मिटाए मम मानस के रोग...

*

ममता-वात्सल्य के पल, दे नव पीढी ने नित्य.

मुझे बताया नव रचना से थका न अभी अनित्य.

'सलिल' अशुभ पर जयी सदा शुभ, दे तू भी निज योग...

*

स्मृति-दीर्घा में आ-जाकर, गया पीर सब भूल.

यात्रा पूर्ण, नयी यात्रा में साथ फूल कुछ शूल.

लेकर आया नया साल, मिल इसे लगायें भोग...

***********

Monday, December 21, 2009

दोहा गीतिका --.'सलिल'

(अभिनव प्रयोग)



दोहा गीतिका


'सलिल'

*

तुमको मालूम ही नहीं शोलों की तासीर।

तुम क्या जानो ख्वाब की कैसे हो ताबीर?


बहरे मिलकर सुन रहे गूँगों की तक़रीर।

बिलख रही जम्हूरियत, सिसक रही है पीर।


दहशतगर्दों की हुई है जबसे तक्सीर

वतनपरस्ती हो गयी खतरनाक तक्सीर।


फेंक द्रौपदी खुद रही फाड़-फाड़ निज चीर।

भीष्म द्रोण कूर कृष्ण संग, घूरें पांडव वीर।


हिम्मत मत हारें- करें, सब मिलकर तदबीर।

प्यार-मुहब्बत ही रहे मजहब की तफसीर।


सपनों को साकार कर, धरकर मन में धीर।

हर बाधा-संकट बने, पानी की प्राचीर।


हिंद और हिंदी करे दुनिया को तन्वीर।

बेहतर से बेहतर बने इन्सां की तस्वीर।


हाय! सियासत रह गयी, सिर्फ स्वार्थ-तज़्वीर।

खिदमत भूली, कर रही बातों की तब्ज़ीर।


तरस रहा मन 'सलिल' दे वक़्त एक तब्शीर।

शब्दों के आगे झुके, जालिम की शमशीर।

*********************************

तासीर = असर/ प्रभाव, ताबीर = कहना, तक़रीर = बात/भाषण, जम्हूरियत = लोकतंत्र, दहशतगर्दों = आतंकवादियों, तकसीर = बहुतायत, वतनपरस्ती = देशभक्ति, तकसीर = दोष/अपराध, तदबीर = उपाय, तफसीर = व्याख्या, तनवीर = प्रकाशित, तस्वीर = चित्र/छवि, ताज्वीर = कपट, खिदमत = सेवा, कौम = समाज, तब्जीर = अपव्यय, तब्शीर = शुभ-सन्देश, ज़ालिम = अत्याचारी, शमशीर = तलवार..

Thursday, December 17, 2009

कविता: कायस्थ -प्रतिभा

कविता: कायस्थ -प्रतिभा

pratibha_saksena@yahoo.com

'चित्त-चित्त में गुप्त हैं, चित्रगुप्त परमात्म.

गुप्त चित्र निज देख ले,'सलिल' धन्य हो आत्म.'

आचार्य जी,

'गागर मे सागर' भरने की कला के प्रमाण हैं आपके दोहे । नमन करती हूँ !

उपरोक्त दोहे से अपनी एक कविता याद आ गई प्रस्तुत है -

कायस्थ

कोई पूछता है मेरी जाति

मुझे हँसी आती है

मैं तो काया में स्थित आत्म हूँ !

न ब्राह्मण, न क्षत्री, न वैश्य, न शूद्र ,

कोई जाति नहीं मेरी,

लोगों ने जो बना रखी हैं !

मैं नहीं जन्मा हूँ मुँह से,

न हाथ से, न पेट से, न पैर से,

किसी अकेले अंग से नहीं !

उस चिद्आत्म के पूरे तन

और भावन से प्रकटित स्वरूप- मैं,

सचेत, स्वतंत्र,निर्बंध!

सहज मानव, पूर्वाग्रह रहित!

मुझे परहेज़ नहीं नये विचारों से,

ढाल लेता हूँ स्वयं को

समय के अनुरूप !

पढ़ता-लिखता,

सोच-विचार कर

लेखा-जोखा करता हूँ

इस दुनिया का !

रचा तुमने,

चेतना का एक चित्र

जो गुप्त था तुम्हारे चित्त में,

ढाल दिया उसे काया में!

कायस्थ हूँ मैं!

प्रभु!अच्छा किया तुमने,

कि कोई जाति न दे

मुझे कायस्थ बनाया !

- प्रतिभा.
************

अम्बरीष श्रीवास्तव ambarishji@gmail.com
आदरणीय आचार्य जी,

महराज चित्रगुप्त को नमन करते हुए मैं आदरणीया प्रतिभा जी से प्रेरित होकर की राह में चल रहा हूँ

कायस्थ

मनुज योनि के सृजक हैं, ब्रह्माजी महराज

सकल सृष्टि उनकी रची, उनमें जग का राज

मुखारबिंदु से ब्राह्मण, भुजा से क्षत्रिय पूत

वैश्य जनम है उदर से, जंघा से सब शूद्र

धर्मराज व्याकुल हुए, लख चौरासी योनि

संकट भारी हो रहा, लेखा देखे कौन

ब्रह्माजी को तब हुआ, भगवन का आदेश

ग्यारह शतकों तप करो , प्रकटें स्वयं यमेश

काया से उत्त्पन्न हैं, कहते वेद पुराण

व्योम संहिता में मिले , कुल कायस्थ प्रमाण

चित्त साधना से हुए , गुप्त रखें सब काम

ब्रह्माजी नें तब रखा, चित्रगुप्त शुभ नाम

ब्राह्मण सम कायस्थ हैं , सुरभित सम सुप्रभात

ब्रह्म कायस्थ जगत में, कब से है विख्यात

प्रतिभा शील विनम्रता, निर्मल सरस विचार

पर-उपकार सदाचरण, इनका है आधार

सबको आदर दे रहे, रखते सबका मान

सारे जग के मित्र हैं, सदगुण की ये खान

दुनिया में फैले सदा, विद्या बिंदु प्रकाश

एक सभी कायस्थ हों, मिलकर करें प्रयास

कायस्थों की कामना, सब होवें कायस्थ

सूर्य ज्ञान का विश्व में, कभी ना होवे अस्त

सादर,

--अम्बरीष श्रीवास्तव (Architectural Engineer)

91, Agha Colony, Civil Lines Sitapur (U. P.)Mobile 09415047020

*************************

दोहांजलि --संजीव "सलिल"

दोहांजलि




संजीव "सलिल"





मित्र-भाव अनमोल है, यह रिश्ता निष्काम.

मित्र मनाये- मित्र हित, 'सदा कुशल हो राम'..



अनिल अनल भू नभ सलिल, पञ्च तत्वमय देह.

आत्म मिले परमात्म में, तब हो देह विदेह..



जन्म ब्याह राखी तिलक, ग्रह प्रवेश त्यौहार.

सलिल बचा पौधे लगा, दें पुस्तक उपहार..



चित्त-चित्त में गुप्त हैं, चित्रगुप्त परमात्म.

गुप्त चित्र निज देख ले, तभी धन्य हो आत्म..



शब्द-शब्द अनुभूतियाँ, अक्षर-अक्षर भाव.

नाद, थाप, सुर, ताल से, मिटते सकल अभाव..



सलिल साधना स्नेह की, सच्ची पूजा जान.

प्रति पल कर निष्काम तू, जीवन हो रस-खान..



उसको ही रस-निधि मिले, जो होता रस-लीन.

पान न रस का अन्य को, करने दे रस-हीन..



कहो कहाँ से आए हैं, कहाँ जायेंगे आप?

लाये थे, ले जाएँगे, सलिल पुण्य या पाप??



जितना पाया खो दिया, जो खोया है साथ.

झुका उठ गया, उठाया झुकता पाया माथ..



साथ रहा संसार तो, उसका रहा न साथ.

सबने छोड़ा साथ तो, पाया उसको साथ..



नेह-नर्मदा सनातन, 'सलिल' सच्चिदानंद.

अक्षर की आराधना, शाश्वत परमानंद..



सुधि की गठरी जिंदगी, साँसों का आधार.

धीरज धरकर खोल मन, लुटा-लूट ले प्यार..



स्नेह साधना नित करे, जो मन में धर धीर.

इस दुनिया में है नहीं, उससे बड़ा अमीर..


नेह नर्मदा में नहा, तरते तन मन प्राण.

कंकर भी शंकर बने, जड़ भी हो संप्राण..


कलकल सलिल प्रवाह में, सुन जीवन का गान.

पाषाणों को मोम कर, दे॑ दे कर मुस्कान..


******************************

Sunday, December 13, 2009

कायस्थ परिवार पत्रिका के लिये आलेख आमंत्रित हैं

कायस्थ परिवार की एक पत्रिका प्रिंट फॉर्म मे पिछले ७५ सालो से प्रकशित हो रही हैं । पत्रिका को श्री आर सी श्रीवास्तव जी चलाते थे और गत वर्ष उनका निधन हो गया हैं । अब इस पत्रिका को उनके बेटे श्री अनुज कुमार जारी रखना चाहते हैं ।
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रचना

Friday, December 11, 2009

भक्ति गीत: श्री भगवान -आचार्य संजीव 'सलिल'

भक्ति गीत
श्री भगवान
आचार्य संजीव 'सलिल'
*
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...
*
जब मेरे प्रभु जग में आवें, नभ से देव सुमन बरसावें।
कलम-दवात सुशोभित कर में, देते अक्षर ज्ञान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...
*
चित्रगुप्त प्रभु शब्द-शक्ति हैं, माँ सरस्वती नाद शक्ति हैं।
ध्वनि अक्षर का मेल ऋचाएं, मन्त्र-श्लोक विज्ञान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...
*
मातु नंदिनी आदिशक्ति हैं। माँ इरावती मोह-मुक्ति हैं.
इडा-पिंगला रिद्धि-सिद्धिवत, करती जग-उत्थान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...
कण-कण में जो चित्र गुप्त है, कर्म-लेख वह चित्रगुप्त है।
कायस्थ है काया में स्थित, आत्मा महिमावान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...
*
विधि-हरि-हर रच-पाल-मिटायें, अनहद सुन योगी तर जायें।
रमा-शारदा-शक्ति करें नित, जड़-चेतन कल्याण
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...
श्यामल मुखछवि, रूप सुहाना, जैसा बोना वैसा पाना।
कर्म न कोई छिपे ईश से, 'सलिल' रहे अनजान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...
*लोभ-मोह-विद्वेष-काम तज, करुणासागर प्रभु का नाम भज।
कर सत्कर्म 'शान्ति' पा ले, दुष्कर्म अशांति विधान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

***********

Wednesday, December 9, 2009

भजन: सुन लो विनय गजानन संजीव 'सलिल'

भजन:


सुन लो विनय गजानन

संजीव 'सलिल'

जय गणेश विघ्नेश उमासुत, ऋद्धि-सिद्धि के नाथ.

हर बाधा हर हर शुभ करें, विनत नवाऊँ माथ..

*

सुन लो विनय गजानन मोरी

सुन लो विनय गजानन

जनवाणी-हिंदी जगवाणी

हो, वर दो मनभावन.

करो कृपा हो देश हमारा

सुरभित नंदन कानन....

*

नेह नर्मदा में अवगाहन, कर हम भारतवासी.

सफल साधन कर पायें,वर दो हे घट-घटवासी.

भारत माता का हर घर हो,

शिवसुत! तीरथ पावन.

करो कृपा हो देश हमारा

सुरभित नंदन कानन....

*
प्रकृति-पुत्र बनकर हम मानव, सबकी खुशी मनायें.

पर्यावरण प्रदूषण हरकर, भू पर स्वर्ग बसायें.

रहे 'सलिल' के मन में प्रभुवर

श्री गणेश तव आसन.

करो कृपा हो देश हमारा

सुरभित नंदन कानन....

*

Sunday, December 6, 2009

चित्रगुप्त भजन : धन-धन भाग हमारे ---आचार्य संजीव 'सलिल'

धन-धन भाग हमारे
आचार्य संजीव 'सलिल'

धन-धन भाग हमारे, प्रभु द्वारे पधारे।
शरणागत को तारें, प्रभु द्वारे पधारे....
माटी तन, चंचल अंतर्मन, परस हो प्रभु, करदो कंचन।
जनगण नित्य पुकारे, प्रभु द्वारे पधारे....
प्रीत की रीत हमेशा निभायी, लाज भगत की सदा बचाई।
कबहूँ न तनक बिसारे, प्रभु द्वारे पधारे...
मिथ्या जग की तृष्णा-माया, अक्षय प्रभु की अमृत छाया।
मिल जय-जय गुंजा रे, प्रभु द्वारे पधारे...
आस-श्वास सी दोऊ मैया, ममतामय आँचल दे छैंया।
सुत का भाग जगा रे, प्रभु द्वारे पधारे...
नेह नर्मदा संबंधों की, जन्म-जन्म के अनुबंधों की।
नाते 'सलिल' निभा रे, प्रभु द्वारे पधारे...



***************

Saturday, December 5, 2009

लेख आमंत्रित हैं

कायस्थ परिवार पत्रिका
जिन ब्लॉगर मित्रो ने इस ब्लॉग की सदस्यता ले ली हैं उनसे निवेदन हैं की अपने आलेख { कविता , कहानी , लेख , या कायस्थ समाज से सम्बंधित लेख } इस ब्लॉग पर डालना शुरू करदे ।
आप के लेखक इस के बाद प्रिंट फॉर्म मे यही से पत्रिका के लिये ले लिये जायेगे ।
लेख के नीचे आप अपनी अनुमति भी दे दे की आप को इस लेख को कायस्थ परिवार पत्रिका मे छापने से कोई आपत्ति नहीं हैं ।
सादर
रचना

Thursday, December 3, 2009

कायस्थ परिवार पत्रिका

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Monday, November 30, 2009

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Sunday, November 29, 2009

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Kayastha Parivar, A-13, Brij Vihar, Gaziabad(U.P.) Ph.: 0120-३०१९०२८
आप सीधा उनसे संपर्क करके इस पत्रिका के लिये अपनी बहुमूल्य रचनाये भेज सकते हैं

इस के अलावा आप मे से वो जितने भी कायस्थ मित्र इस ब्लॉग से जुड़ कर अपने चुने हुए लेख इस पर देना चाहे वो कमेन्ट मे मुझ से संपर्क कर सकते हैं । उसके पश्चात आप जो भी पोस्ट यहाँ पुब्लिश करेगे वो पत्रिका के अगले अंक मे अपने आप आ जायेगे ।

लेख हिन्दी और इंग्लिश दोनों मे चाहिये । जो लोग कायस्थ समाज से जुड़ना चाहते हैं वो भी श्री अनुज कुमर जी से संपर्क कर सकते हैं । इस पत्रिका की वेब साईट का लिंक भी हैं आप देखे और अपना सहयोग दे
धन्यवाद
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कायस्थ परिवार पत्रिका

कायस्थ परिवार की एक पत्रिका प्रिंट फॉर्म मे पिछले ७५ सालो से प्रकशित हो रही हैं पत्रिका को श्री आर सी श्रीवास्तव जी चलाते थे और गत वर्ष उनका निधन हो गया हैं अब इस पत्रिका को उनके बेटे श्री अनुज कुमार जारी रखना चाहते हैं
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Saturday, November 28, 2009

कायस्थ परिवार पत्रिका

कायस्थ परिवार की एक पत्रिका प्रिंट फॉर्म मे पिछले ७५ सालो से प्रकशित हो रही हैं । पत्रिका को श्री आर सी श्रीवास्तव जी चलाते थे और गत वर्ष उनका निधन हो गया हैं । अब इस पत्रिका को उनके बेटे श्री अनुज कुमार जारी रखना चाहते हैं ।
इस पत्रिका मे हिन्दी और इंग्लिश के लेख छपते हैं । आप ब्लॉगर मे से जो भी कायस्थ ब्लॉगर अपनी कृतियाँ इस पत्रिका मे देना चाहता हैं वो अपना आलेख अनुज को kayasthparivaar@yahoo.com पर भेज सकते हैं । कोई भी पैसा इस कार्य के लिये नहीं दिया जा सकता हैं क्युकी पत्रिका बिना किसी अनुदान के एक परिवार के अथक परिश्रम से चल रही हैं ।
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