Thursday, October 27, 2022

नवगीत, लक्ष्मी, दीवाली, पुस्तकालय, चित्रगुप्त, यम द्वितीया, दीवाली

नवगीत
लछमी मैया!
माटी का कछु कर्ज चुकाओ
*
देस बँट रहो,
नेह घट रहो,
लील रई दीपक खों झालर
नेह-गेह तज देह बजारू
भई; कैत है प्रगतिसील हम।
हैप्पी दीवाली
अनहैप्पी बैस्ट विशेज से पिंड छुड़ाओ
*
मूँड़ मुड़ाए
ओले पड़ रए
मूरत लगे अवध में भारी
कहूँ दूर बनवास बिता रई
अबला निबल सिया-सत मारी
हाय! सियासत
अंधभक्त हौ-हौ कर रए रे
तनिक चुपाओ
*
नकली टँसुए
रोज बहाउत
नेता गगनबिहारी बन खें
डूब बाढ़ में जनगण मर रओ
नित बिदेस में घूमें तन खें
दारू बेच;
पिला; मत पीना कैती जो
बो नीति मिटाओ
***

***
एक रचना
*
दिल जलता है तो जलने दे
दीवाली है
आँसू न बहा फरियाद न कर
दीवाली है
दीपक-बाती में नाता क्या लालू पूछे
चुप घरवाला है, चपल मुखर घरवाली है
फिर तेल धार क्या लगी तनिक यह बतलाओ
यह दाल-भात में मूसल रसमय साली है
जो बेच-खरीद रहे उनको समधी जानो
जो जला रही तीली सरहज मतवाली है
सासू याद करे अपने दिन मुस्काकर
साला बोला हाथ लगी हम्माली है
सखी-सहेली हवा छेड़ती जीजू को
भभक रही लौ लाल न जाए सँभाली है
दिल जलता है तो जलने दे दीवाली है
आँसू न बहा फरियाद न कर दीवाली है
२७-१०-२०१९
***
एक रचना
*
अर्चना कर सत्य की, शिव-साधना सुन्दर करें।
जग चलें गिर उठ बढ़ें, आराधना तम हर करें।।
*
कौन किसका है यहाँ?, छाया न देती साथ है।
मोह-माया कम रहे, श्रम-त्याग को सहचर करें।।
*
एक मालिक है वही, जिसने हमें पैदा किया।
मुक्त होकर अहं से, निज चित्त प्रभु-चाकर करें।।
*
वरे अक्षर निरक्षर, तब शब्द कविता से मिले।
भाव-रस-लय त्रिवेणी, अवगाह चित अनुचर करें।।
*
पूर्णिमा की चंद्र-छवि, निर्मल 'सलिल में निरखकर।
कुछ रचें; कुछ सुन-सुना, निज आत्म को मधुकर करें।।
करवा चौथ २७-१०-२०१८
जबलपुर
***
शांति-राज पारिवारिक पुस्तकालय योजना
*
विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर के तत्वावधान में नई पीढ़ी के मन में हिंदी के प्रति प्रेम तथा भारतीय संस्कारों के प्रति लगाव तभी हो सकता है जब वे बचपन से सत्साहित्य पढ़ें। 
क्या आपने पांच महापर्वों के अवसर पर बच्चों को हिंदी साहित्य की कोई पुस्तक उपहार में दी है ? यदि नहीं तो कभी नहीं से देर भली अब दे दीजिए। 
जान ब्याह राखी तिलक, गृह प्रवेश त्यौहार। 
सलिल बचा; पौधे लगा, दें पुस्तक उपहार।।  
नई पीढ़ी में पुस्तक संस्कृति के प्रति प्रेम जागृत करने उद्देश्य से पारिवारिक पुस्तकालय योजना आरम्भ की जा रही है। इस योजना के अंतर्गत निम्न में से ५००/- से अधिक की पुस्तकें मँगाने पर मूल्य में २०% छूट, पैकिंग व डाक व्यय निशुल्क की सुविधा उपलब्ध है। पुस्तक खरीदने के लिए ९४२५१८३२४४ पर पे टी एम कर सूचित करें।
पुस्तक सूची
काव्य
०१. मीत मेरे कविताएँ -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' १५०/-
०२. काल है संक्रांति का गीत-नवगीत संग्रह -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ३००/-
०३. कुरुक्षेत्र गाथा खंड काव्य -स्व. डी.पी.खरे -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ३००/-
०४. सड़क पर नवगीत संग्रह -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल २५०/-
०५. २१ श्रेष्ठ बुंदेली लोक कथाएँ मध्य प्रदेश  -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल १५०/-  
०६. २१ श्रेष्ठ आदिवासी लोक कथाएँ मध्य प्रदेश  -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल १५०/-
०७. आदमी अभी जिन्दा है लघुकथा संग्रह  -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल ३७०/-
०८. ओ मेरी तुम नवगीत संग्रह  -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल ३००/-
०९. लोकतंत्र का मक़बरा काव्य संग्रह  -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल ३००/-
१०. कलम के देव भक्ति गीत संग्रह -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' २००/-
११. पहला कदम काव्य संग्रह -डॉ. अनूप निगम १००/-
१२. कदाचित काव्य संग्रह - स्व. सुभाष पांडे १२०/-
१३. Off And On -English Gazals Dr. Anil Jain ८०/-
१४. यदा-कदा -उक्त का हिंदी काव्यानुवाद- डॉ. बाबू जोसफ-स्टीव विंसेंट १२०/-
१५. Contemporary Hindi Poetry - B.P. Mishra 'Niyaz' ३००/-
१६. महामात्य महाकाव्य दयाराम गुप्त 'पथिक' ३५०/-
१७. कालजयी महाकाव्य दयाराम गुप्त 'पथिक' २२५/-
१८ . सूतपुत्र महाकाव्य दयाराम गुप्त 'पथिक' १२५/-
१९. अंतर संवाद कहानियाँ रजनी सक्सेना २००/-
२०. दोहा-दोहा नर्मदा दोहा संकलन सं. सलिल-डॉ. साधना वर्मा २५०/-
२१. दोहा सलिला निर्मला दोहा संकलन सं. सलिल-डॉ. साधना वर्मा २५०/-
२२. दोहा दिव्य दिनेश दोहा संकलन सं. सलिल-डॉ. साधना वर्मा ३००/-
२३. सड़क पर गीत-नवगीत संग्रह आचार्य संजीव 'सलिल' ३००/-
२४. The Second Thought - English Poetry - Dr .Anil Ashok Jain​ १५०/-
२५. जीतने की जिद कविता संग्रह -सरला वर्मा १२५/- 
२६. राम नाम सुखदाई भजन संग्रह -शांति देवी वर्मा १००/- 
२७. काव्य कालिंदी काव्य संग्रह -डॉ. संतोष शुक्ला, २५०/- 
२८. खुशियों की सौगात दोहा सतसई -डॉ. संतोष शुक्ला २५०/- 
२९. फुरकत ग़ज़ल संग्रह -विभा तिवारी १५०/- 
३०. सलिल एक साहित्यिक निर्झर  -मनोरमा जैन 'पाखी' २५०/-
***
नवगीत:
चित्रगुप्त को
पूज रहे हैं
गुप्त चित्र
आकार नहीं
होता है
साकार वही
कथा कही
आधार नहीं
बुद्धिपूर्ण
आचार नहीं
बिन समझे
हल बूझ रहे हैं
कलम उठाये
उलटा हाथ
भू पर वे हैं
जिनका नाथ
खुद को प्रभु के
जोड़ा साथ
फल यह कोई
नवाए न माथ
खुद से खुद ही
जूझ रहे हैं
पड़ी समय की
बेहद मार
फिर भी
आया नहीं सुधार
अकल अजीर्ण
हुए बेज़ार
नव पीढ़ी का
बंटाधार
हल न कहीं भी
सूझ रहे हैं
***
नवगीत:
ऐसा कैसा
पर्व मनाया ?
मनुज सभ्य है
करते दावा
बोल रहे
कुदरत पर धावा
कोई काम
न करते सादा
करते कभी
न पूरा वादा
अवसर पाकर
स्वार्थ भुनाया
धुआँ, धूल
कचरा फैलाते
हल्ला-गुल्ला
शोर मचाते
आज पूज
कल फेकें प्रतिमा
समझें नहीं
ईश की गरिमा
अपनों को ही
किया पराया
धनवानों ने
किया प्रदर्शन
लंघन करता
भूखा-निर्धन
फूट रहे हैं
सरहद पर बम
नहीं किसी को
थोड़ा भी गम
तजी सफाई
किया सफाया
***
दोहा सलिला :
कथ्य भाव रस छंद लय, पंच तत्व की खान
पड़े कान में ह्रदय छू, काव्य करे संप्राण
मिलने हम मिल में गये, मिल न सके दिल साथ
हमदम मिले मशीन बन, रहे हाथ में हाथ
हिल-मिलकर हम खुश रहें, दोनों बने अमीर
मिल-जुलकर हँस जोर से, महका सकें समीर.
मन दर्पण में देख रे!, दिख जायेगा अक्स
वो जिससे तू दूर है, पर जिसका बरअक्स
जिस देहरी ने जन्म से, अब तक करी सम्हार
छोड़ चली मैं अब उसे, भला करे करतार
माटी माटी में मिले, माटी को स्वीकार
माटी माटी से मिले, माटी ले आकार
मैं ना हूँ तो तू रहे, दोनों मिट हों हम
मैना - कोयल मिल गले, कभी मिटायें गम
२७-१०-२०१४
***
यम द्वितीया चित्रगुप्त पूजन पर विशेष भेंट:
भजन: १
प्रभु हैं तेरे पास में...
-- संजीव 'सलिल'
*
कहाँ खोजता मूरख प्राणी?, प्रभु हैं तेरे पास में...
*
तन तो धोता रोज न करता, मन को क्यों तू साफ रे!
जो तेरा अपराधी है, उसको कर दे हँस माफ़ रे..
प्रभु को देख दोस्त-दुश्मन में, तम में और प्रकाश में.
कहाँ खोजता मूरख प्राणी?, प्रभु हैं तेरे पास में...
*
चित्र-गुप्त प्रभु सदा चित्त में, गुप्त झलक नित देख ले.
आँख मूँदकर कर्मों की गति, मन-दर्पण में लेख ले..
आया तो जाने से पहले, प्रभु को सुमिर प्रवास में.
कहाँ खोजता मूरख प्राणी?, प्रभु हैं तेरे पास में...
*
मंदिर-मस्जिद, काशी-काबा मिथ्या माया-जाल है.
वह घट-घट कण-कणवासी है, बीज फूल-फल डाल है..
हर्ष-दर्द उसका प्रसाद, कडुवाहट-मधुर मिठास में.
कहाँ खोजता मूरख प्राणी?, प्रभु हैं तेरे पास में...
*
भजन: २
प्रभु हैं तेरे पास में...
*
जग असार सार हरि सुमिरन ,
डूब भजन में ओ नादां मन...
*
निराकार काया में स्थित,
हो कायस्थ कहाते हैं.
रख नाना आकार दिखाते,
झलक तुरत छिप जाते हैं..
प्रभु दर्शन बिन मन हो उन्मन,
प्रभु दर्शन कर परम शांत मन.
जग असार सार हरि सुमिरन ,
डूब भजन में ओ नादां मन...
*
कोई न अपना सभी पराये,
कोई न गैर सभी अपने हैं.
धूप-छाँव, जागरण-निद्रा,
दिवस-निशा प्रभु के नपने हैं..
पंचतत्व प्रभु माटी-कंचन,
कर मद-मोह-गर्व का भंजन.
जग असार सार हरि सुमिरन ,
डूब भजन में ओ नादां मन...
*
नभ पर्वत भू सलिल लहर प्रभु,
पवन अग्नि रवि शशि तारे हैं.
कोई न प्रभु का, हर जन प्रभु का,
जो आये द्वारे तारे हैं..
नेह नर्मदा में कर मज्जन,
प्रभु-अर्पण करदे निज जीवन.
जग असार सार हरि सुमिरन ,
डूब भजन में ओ नादां मन...
***
दीवाली के संग : दोहा का रंग

*
सरहद पर दे कटा सर, हद अरि करे न पार.
राष्ट्र-दीप पर हो 'सलिल', प्राण-दीप बलिहार..
*
आपद-विपदाग्रस्त को, 'सलिल' न जाना भूल.
दो दीपक रख आ वहाँ, ले अँजुरी भर फूल..
*
कुटिया में पाया जनम, राजमहल में मौत.
रपट न थाने में हुई, ज्योति हुई क्यों फौत??
*
तन माटी का दीप है, बाती चलती श्वास.
आत्मा उर्मिल वर्तिका, घृत अंतर की आस..
*
दीप जला, जय बोलना, दुनिया का दस्तूर.
दीप बुझा, चुप फेंकना, कर्म क्रूर-अक्रूर..
*
चलते रहना ही सफर, रुकना काम-अकाम.
जलते रहना ज़िंदगी, बुझना पूर्ण विराम.
*
सूरज की किरणें करें नवजीवन संचार.
दीपक की किरणें करें, धरती का सिंगार..
*
मन देहरी ने वर लिये, जगमग दोहा-दीप.
तन ड्योढ़ी पर धर दिये, गुपचुप आँगन लीप..
*
करे प्रार्थना, वंदना, प्रेयर, सबद, अजान.
रसनिधि है रसलीन या, दीपक है रसखान..
*
मन्दिर-मस्जिद, राह-घर, या मचान-खलिहान.
दीपक फर्क न जानता, ज्योतित करे जहान..
*
मद्यप परवाना नहीं, समझ सका यह बात.
साक़ी लौ ले उजाला, लाई मरण-सौगात..
२७-१०-२०११
*

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