Monday, October 31, 2022

छठ पूजा

छठ पर्व :

 मुल्तान शहर -  उर्वर पंजाब , मरुभूमि बहावलपुर व सभ्यता के सृजक सिंध की भूमि के बीचो बीच स्तिथ है, इसका सूर्य मन्दिर कभी विश्व का सबसे बड़ा सूर्य मंदिर था।

इस सूर्य मंदिर के भगत उपासक पख्त राजपुत्रों (पख्तून जिन्हें हम पठान भी कहते है) ने महाभारत युद्ध मे भी भाग लिया था। उनकी भूमि काबुल घाटी व अफगानी नांगरहार प्रान्त में  स्तिथ थी यह जून  (सूर्य का अपभ्रंश) के उपासकों की भूमि थी। जून से ही अंग्रेजी 'सन' शब्द का जन्म हुआ वे सब हिन्दू 'तुर्क शाही' और बाद में काबुल की हिन्दू शाही सल्तनत में फलते फूलते रहे। यह बात उन दिनों की हैं जब भारत मे गुर्जर प्रतिहार राजा थे।

फिर अरब आये अफगानी व मुल्तान के सूर्य मन्दिरों को रौंदा मुल्तान पर अरबों का कब्जा हो गया सूर्य प्रतिमा में जड़े सुर्ख लाल रूबी लूट लिए हए सूर्य उपासक मुल्तान इत्यादि से बेदखल हो हिंदुस्तान में यहां वहां बसने लगे उनमे से कुछ सूर्य की वैद्यकीय (मेडिकल इम्पोर्टेंस) के जानकार थे उन्होंने इस परंपरा को बिहार में नन्हे पौधे की तरह रोप दिया जो आज वट वृक्ष (बरगद) बन गया हैं।

जिन लोगो को गप्प लगे वो पढ़ ले कि क्यों अफगानी पठानों का  सूरी राजवंश 'सूरी' कहलाता था। साथ ही वे विकिपीडिया पर मौजूद यह कमेंट पढ़ ले "According to André Wink the cult of this god was primarily Hindu, though parallels have also been noted with pre-Buddhist religious and monarchy practices in Tibet and had Zoroastrian influence in its ritual."

जिनको इतिहास की कम मालूमात हो वे भी शेर शाह सूरी और  ग्रैंड ट्रंक रोड को जानते होंगे। यह भी दिलचस्प बात है सूर्य उपासकों के परिवार से मुस्लिम बने शेरशाह सूरी भी आज बिहार में दफ़न हैं। आज सूर्य उपासना अरबी वहशत में पंजाब से तय उजड़ गयी पर बिहार में स्थापित हो गयी साथ ही अरबों के साथ बसे कूर्द लोगों में भी कहीं कहीं यह प्रथा विद्यमान हैं। जो इन सूर्य उपासना पर पढ़ना चाहे वे सम्राट जयपाल, सम्राट आनन्दपाल व समेत त्रिलोचनपाल के संघर्ष को भी पढ़े पढ़े के कैसे काबुल गंधार मुल्तान में हमारी समृद्ध परम्पराओं के यह क्षत्रिय वीर वाहक थे।
✍🏻साभार 

पूरे विश्व में सूर्य क्षेत्र हैं, केवल बिहार में छठ क्यों होता है?
भारत में ओड़िशा का कोणार्क, गुजरात का मोढेरा, उत्तर प्रदेश का थानेश्वर (स्थाण्वीश्वर), वर्तमान पाकिस्तान का मुल्तान (मूलस्थान)।
सूर्य पूजा के वैदिक मन्त्र में उनको कश्यप गोत्रीय कलिङ्ग देशोद्भव कहते हैं। पर कलिङ्ग में अभी कोई सूर्य पूजा नहीं हो रही है।
जापान, मिस्र, पेरु के इंका राजा सूर्य वंशी थे। इंका प्रभाव से सूर्य को भारतीय ज्योतिष में इनः कहा गया है। 
सोवियत रूस में अर्काइम प्राचीन सूर्य पीठ है जिसकी खोज १९८७ में हुई (अर्क = सूर्य)। पण्डित मधुसूदन ओझा ने १९३० पें प्रकाशित अपने ग्रन्थ इन्द्रविजय में इसके स्थान की प्रायः सटीक भविष्यवाणी की थी।
लखनऊ की मधुरी पत्रिका के १९३१ में पण्डित चन्द्रशेखर उपाध्याय के लेख ’रूसी भाषा और भारत’ में प्रायः ३००० रूसी शब्दों की सूची थी जिनका अर्थ वहां आज भी वही है, जो वेद में होता था। उसमें एक टिप्पणी थी कि रूस में भी सूर्य पूजा के लिए ठेकुआ बनता था।
एशिया-यूरोप सीमा पर हेलेसपौण्ट भी सूर्य पूजा का केन्द्र था। (ग्रीक में हेलिओस = सूर्य)।
प्राचीन विश्व के समय क्षेत्र उज्जैन से ६-६ अंश अन्तर पर थे, जिनकी सीमाओं पर आज भी प्रायः ३० स्थान वर्तमान हैं, जहां पिरामिड आदि बने हैं।

बिहार में छठ द्वारा सूर्य पूजा के अनुमानित कारण-
भारत और विश्व में सूर्य के कई क्षेत्र हैं, जो आज भी उन नामों से उपलब्ध हैं। पर बिहार में ही छठ पूजा होने के कुछ कारण हैं।
मुंगेर-भागलपुर राजधानी में स्थित कर्ण सूर्य पूजक थे। गया जिले के देव में सूर्य मन्दिर है। महाराष्ट्र के देवगिरि की तरह यहां के देव का नाम भी औरंगाबाद हो गया। मूल नामों से इतिहास समझने में सुविधा होती है। गया का एक और महत्त्व है कि यह प्राचीन काल में कर्क रेखा पर था जो सूर्य गति की उत्तर सीमा है। अतः यहां सौर मण्डल को पार करनेवाले आत्मा अंश के लिए गया श्राद्ध होता है। सौर मण्डल को पार करने वाले प्राण को गय कहते हैं (हिन्दी में कहते हैं चला गया)।
स यत् आह गयः असि-इति सोमं या एतत् आह, एष ह वै चन्द्रमा भूत्वा सर्वान् लोकान् गच्छति-तस्मात् गयस्य गयत्वम् (गोपथ ब्राह्मण, पूर्व, ५/१४)
प्राणा वै गयः (शतपथ ब्राह्मण, १४/८/१५/७, बृहदारण्यक उपनिषद्, ५/१४/४)
अतः गया और देव-दोनों प्रत्यक्ष देव सूर्य के मुख्य स्थान हैं।
बिहार के पटना, मुंगेर तथा भागलपुर के नदी पत्तनों से समुद्री जहाज जाते थे। पटना नाम का मूल पत्तन है, जिसका अर्थ बन्दरगाह है, जैसे गुजरात का प्रभास-पत्तन या पाटण, आन्ध्र प्रदेश का विशाखा-पत्तनम्। उसके पूर्व व्रत उपवास द्वारा शरीर को स्वस्थ रखना आवश्यक है जिससे समुद्री यात्रा में बीमार नहीं हों। 
ओड़िशा में कार्त्तिक-पूर्णिमा को बइत-बन्धान (वहित्र - नाव, जलयान) का उत्सव होता है जिसमें पारादीप पत्तन से अनुष्ठान रूप में जहाज चलते हैं। यहां भी कार्त्तिक मास में सादा भोजन करने की परम्परा है, कई व्यक्ति दिन में केवल एक बार भोजन करते हैं। उसके बाद समुद्र यात्रा के योग्य होते हैं।
समुद्री यात्रा से पहले घाट तक सामान पहुंचाया जाता है। उसे ढोने के लिए बहंगी (वहन का अंग) कहते हैं। ओड़िशा में भी बहंगा बाजार है। बिहार के पत्तन समुद्र से थोड़ा दूर हैं, अतः वहां कार्त्तिक पूर्णिमा से ९ दिन पूर्व छठ होता है।
छठ के बारे में कई प्रश्न हैं। इनके यथा सम्भव समाधान कर रहा हूं-
(१) कार्त्तिक मास में क्यों-२ प्रकार के कृत्तिका नक्षत्र हैं। एक तो आकाश में ६ तारों के समूह के रूप में दीखता है। दूसरा वह है जो अनन्त वृत्त की सतह पर विषुव तथा क्रान्ति वृत्त (पृथ्वी कक्षा) का कटान विन्दु है। जिस विन्दु पर क्रान्तिवृत्त विषुव से ऊपर (उत्तर) की तरफ निकलता है, उसे कृत्तिका (कैंची) कहते हैं। इसकी २ शाखा विपरीत विन्दु पर मिलती हैं, वह विशाखा नक्षत्र हुआ। आंख से या दूरदर्शक से देखने पर आकाश के पिण्डों की स्थिति स्थिर ताराओं की तुलना में दीखती है, इसे वेद में चचरा जैसा कहा है। पतरेव चर्चरा चन्द्र-निर्णिक् (ऋक् १०/१०६/८) = पतरा में तिथि निर्णय चचरा में चन्द्र गति से होता है। नाले पर बांस के लट्ठों का पुल चचरा है, चलने पर वह चड़-चड़ आवाज करता है।  
गणना के लिये विषुव-क्रान्ति वृत्तों के मिलन विन्दु से गोलीय त्रिभुज पूरा होता है, अतः वहीं से गणना करते हैं। दोनों शून्य विन्दुओं में (तारा कृत्तिका-गोल वृत्त कृत्तिका) में जो अन्तर है वह अयन-अंश है। इसी प्रकार वैदिक रास-चक्र कृत्तिका से शुरु होता है। आकाश में पृथ्वी के अक्ष का चक्र २६,००० वर्ष का है। रास वर्ष का आरम्भ भी कार्त्तिक मास से होता है जिस मास की पूर्णिमा को चन्द्रमा कृत्तिका नक्षत्र में होता है, इसे रास-पूर्णिमा भी कहते हैं। कार्त्तिक मास में समुद्री तूफान बन्द हो जाते हैं, अतः कार्त्तिक पूर्णिमा से ही समुद्री यात्रा शुरु होती थी जिसे ओड़िशा में बालि-यात्रा कहते हैं। अतः कार्त्तिक मास से आरम्भ होने वाला विक्रम सम्वत् विक्रमादित्य द्वारा गुजरात के समुद्र तट सोमनाथ से शुरु हुआ था। पूर्वी भारत में बनारस तक गंगा नदी में जहाज चलते थे। बनारस से समुद्र तक जाने में ७-८ दिन लग जाते हैं, अतः वहा ९ दिन पूर्व छठ पर्व आरम्भ हो जाता है। यात्रा के पूर्व घाट पर रसद सामग्री ले जाते हैं। सामान ढोने के लिये उसे बांस से लटका कर ले जाते हैं जिसे बहंगी (वहन अंगी) कहते हैं। ओड़िशा में भी एक बहंगा बाजार है (जाजपुर रोड के निकट रेलवे स्टेशन)। 
(२) कठिन उपवास क्यों-ओड़िशा में पूरे कार्त्तिक मास प्रतिदिन १ समय बिना मसाला के सादा भोजन करते हैं, जो समुद्री यात्रा के लिये अभ्यस्त करता है और स्वास्थ्य ठीक करता है। बिहार में ३ दिन का उपवास करते हैं, बिना जल का। 
(३) सूर्य पूजा क्यों-विश्व के कई भागों में सूर्य क्षेत्र हैं। सूर्य की स्थिति से अक्षांश, देशान्तर तथा दिशा ज्ञात की जाती है, जो समुद्री यात्रा में अपनी स्थिति तथा गति दिशा जानने के लिये जरूरी है। इन ३ कामों को गणित ज्योतिष में त्रिप्रश्नाधिकार कहा जाता है। अतः विश्व में जो समय क्षेत्र थे उनकी सीमा पर स्थित स्थान सूर्य क्षेत्र कहे जाते थे। आज कल लण्डन के ग्रीनविच को शून्य देशान्तर मान कर उससे ३०-३० मिनट के अन्तर पर विश्व में ४८ समय-भाग हैं। प्राचीन विश्व में उज्जैन से ६-६ अंश के अन्तर पर ६० भाग थे। आज भी अधिकांश भाग उपलब्ध हैं। मुख्य क्षेत्रों के राजा अपने को सूर्यवंशी कहते थे, जैसे पेरू, मेक्सिको, मिस्र, इथिओपिया, जापान के राजा। उज्जैन का समय पृथ्वी का समय कहलाता था, अतः यहां के देवता महा-काल हैं। इसी रेखा पर पहले विषुव स्थान पर लंका थी, अतः वहां के राजा को कुबेर (कु = पृथ्वी, बेर = समय कहते थे। भारत में उज्जैन रेखा के निकट स्थाण्वीश्वर (स्थाणु = स्थिर, ठूंठ) या थानेश्वर तथा कालप्रिय (कालपी) था, ६ अंश पूर्व कालहस्ती, १२ अंश पूर्व कोणार्क का सूर्य क्षेत्र (थोड़ा समुद्र के भीतर जहां कार्त्तिकेय द्वारा समुद्र में स्तम्भ बनाया गया था), १८ अंश पूर्व असम में शोणितपुर (भगदत्त की राजधानी), २४ अंश पूर्व मलयेसिया के पश्चिम लंकावी द्वीप, ४२ अंश पूर्व जापान की पुरानी राजधानी क्योटो है। पश्चिम में ६ अंश पर मूलस्थान (मुल्तान), १२ अंश पर ब्रह्मा का पुष्कर (बुखारा-विष्णु पुराण २/८/२६), मिस्र का मुख्य पिरामिड ४५ अंश पर, हेलेसपौण्ट (हेलियोस = सूर्य) या डार्डेनल ४२ अंश पर, रुद्रेश (लौर्डेस-फ्र्ंस-स्विट्जरलैण्ड सीमा) ७२ अंश पर, इंगलैण्ड की प्राचीन वेधशाला लंकाशायर का स्टोनहेञ्ज ७८ अंश पश्चिम, पेरु के इंका (इन = सूर्य) राजाओं की राजधानी १५० अंश पर हैं। इन स्थानों के नाम लंका या मेरु हैं। 
अन्तिम लंका वाराणसी की लंका थी जहां सवाई जयसिंह ने वेधशाला बनाई थी। प्राचीनकाल में भी वेधशाला थी, जिस स्थान को लोलार्क कहते थे। पटना के पूर्व पुण्यार्क (पुनारख) था। उसके थोड़ा दक्षिण कर्क रेखा पर देव था। औरंगाबाद का मूल नाम यही था, जैसे महाराष्ट्र के औरंगाबाद को भी देवगिरि कहते थे। अभी औरंगाबाद के निकट प्राचीन सूर्यमन्दिर स्थान को ही देव कहते थे। 
ज्योतिषीय महत्त्व होने के कारण सूर्य सिद्धान्त में लिखा है कि किसी भी स्थान पर वेध करने के पहले सूर्य पूजा करनी चाहिये (अध्याय १३-सूर्योपनिषद्, , श्लोक १)। वराहमिहिर के पिता का नाम भी आदित्यदास था, जिनके द्वारा सूर्य पूजा द्वारा इनका जन्म हुआ था। इस कारण कुछ लोग इनको मग ब्राह्मण कहते हैं। किन्तु स्वयं गायत्री मन्त्र ही सूर्य की उपासना है-प्रथम पाद उसका स्रष्टा रूप में वर्णन करता है-तत् सवितुः वरेण्यं। सविता = सव या प्रसव (जन्म) करने वाला। यह सविता सूर्य ही है, तत् (वह) सविता सूर्य का जन्मदाता ब्रह्माण्ड (गैलेक्सी) का भी जन्मदाता परब्रह्म है। गायत्री का द्वितीय पाद दृश्य ब्रह्म सूर्य के बारे में है-भर्गो देवस्य धीमहि। वही किरणों के सम्बन्ध द्वारा हमारी बुद्धि को भी नियन्त्रित करता है-धियो यो नः प्रचोदयात्।
 मग ब्राह्मण मुख्यतः बिहार के ही थे, वे शकद्वीपी इसलिये कहे जाते हैं कि गोरखपुर से सिंहभूमि तक शक (सखुआ) वन की शाखा दक्षिन तक चली गयी है, जो अन्य वनों के बीच द्वीप जैसा है। सूर्य द्वारा काल गणना को भी शक कहते हैं। यह सौर वर्ष पर आधारित है, किसी विन्दु से अभी तक दिनों की गणना शक (अहर्गण) है। इससे चान्द्र मास का समन्वय करने पर पर्व का निर्णय होता है। इसके अनुसार समाज चलता है, अतः इसे सम्वत्सर कहते हैं। अग्नि पूजकों को भी आजकल पारसी कहने का रिवाज बन गया है। पर ऋग्वेद तथा सामवेद के प्रथम मन्त्र ही अग्नि से आरम्भ होते हैं जिसके कई अर्थ हैं-अग्निं ईळे पुरोहितम्, अग्न आयाहि वीतये आदि। यजुर्वेद के आरम्भ में भी ईषे त्वा ऊर्हे त्वा वायवस्थः में अग्नि ऊर्जा की गति की चर्चा है।
पृथु के राजा होने पर सबसे पहले मगध के लोगों ने उनकी स्तुति की थी, अतः खुशामदी लोगों को मागध कहते हैं। मागध (व्यक्ति की जीवनी-नाराशंसी लिखने वाले), बन्दी (राज्य के अनुगत) तथा सूत (इतिहास परम्परा चलाने वाले)-३ प्रकार के इतिहास लेखक हैं। भविष्य पुराण में इनको विपरीत दिशा में चलने के कारण मग कहा है (गमन = चलना का उलटा)। मग (मगध) के २ ज्योतिषी जेरुसलेम गये थे और उनकी भविष्यवाणी के कारण ईसा को महापुरुष माना गया।
सूर्य से हमारी आत्मा का सम्बन्ध किरणों के मध्यम से है जो १ मुहूर्त (४८ मिनट) में ३ बार जा कर लौट आता है (ऋग्वेद ३/५३/८)। १५ करोड़ किलोमीटर की दूरी १ तरफ से, ३ लाख कि.मी. प्रति सेकण्द के हिसाब से ८ मिनट लगेंगे। शरीर के भीतर नाभि का चक्र सूर्य चक्र कहते हैं। यह पाचन को नियन्त्रित करता है। अतः स्वास्थ्य के लिये भी सूर्य पूजा की जाती है। इसका व्यायाम रूप भी सूर्य-नमस्कार कहते हैं।
(४) षष्ठी को क्यों-मनुष्य जन्म के बाद ६ठे या २१ वें (नक्षत्र चक्र के २७ दिनमें उलटे क्रम से) बच्चे को सूतिका गृह से बाहर निकलने लायक मानते हैं। 
मनुष्य भी विश्व में ६ठी कृति मानते हैं। इसके पहले विश्व के ५ पर्व हुये थे-स्वयम्भू (पूर्ण विश्व), परमेष्ठी या ब्रह्माण्ड (गैलेक्सी), सौर मण्डल, चन्द्रमण्डल, पृथ्वी। 
कण रूप में भी मनुष्य ६ठी रचना है-ऋषि (रस्सी, स्ट्रिंग), मूल कण, कुण्डलिनी (परमाणु की नाभि), परमाणु, कोषिका (कलिल = सेल) के बाद ६ठा मनुष्य है।
✍🏻अरुण उपाध्याय

नवंबर, मुक्तिका, गीत, दण्डक छंद, मुक्तक, लघुकथा,

कब ? क्या ? नवंबर २०२१
कार्तिक/अगहन (मार्गशीर्ष)
शंकराचार्य संवत २५२८, विक्रम संवत २०७८, ईस्वी २०२१, शक संवत १९४३, हिजरी १४४३, बांग्ला १४२८
*
०१. १८५८ भारत का प्रशासन ईस्ट इण्डिया कंपनी से ब्रिटिश सरकार ने लिया, १८८१ कोलकाता ट्राम सेवा आरंभ, १९१३ ग़दर आरंभ क्रांतिकारी तारकनाथ दास सैनफ्रांसिस्को कैलीफ़ोर्निया, १९२४ पद्मभूषण रामकिंकर उपाध्याय जन्म जबलपुर, १९२७ चित्रकार दीनानाथ भार्गव, १९४२ प्रभा खेतान जन्म, १९५० भारत का पहला रेल इंजिन चितरंजन रेल कारखाना, १९५४ फ़्राँस ने पांडिचेरी, करिकल, माहे तथा यानोन भारत को सौंपे, तापसी नागराज जन्म, ११९५५ डेल कारनेगी निधन, ९५६ कर्णाटक-केरल गठन, दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश, १९६६ पंजाब-हरियाणा गठन, १९७३ ऐश्वर्या राय जन्म, २००० छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश गठन।
०२. १५३४ चौथे गुरु रामदास जयंती, १७७४ रॉबर्ट क्लाइव आत्महत्या, १८९७ सोहराब मोदी जन्म, १९३६ बी बी सी दूरदर्शन आरंभ, १९४० ममता कालिया जन्म, १९५० जॉर्ज बर्नाड शॉ निधन, १९६५ शाहरुख़ खान जन्म, धनतेरस।
०३. १४९३ कोलंबस ने डोमोनोका द्वीप खोजा, १६८८ सवाई जयसिंह जन्म, १८३९ ब्रिटेन-चीन अफीम युद्ध आरंभ, १९०३ पनामा आज़ाद, १९०६ पृथ्वीराज कपूर जन्म, १९३७ संगीतकार लक्ष्मीकांत जन्म, १९३८ असम हिंदी प्रचार समिति स्थापित, १९४८ प्रधानमंत्री नेहरू संयुक्त राष्ट्र सभा प्रथम संबोधन, १९६२ स्वर्ण बांड योजना लागू, रूप चतुर्दशी (नरक चौदस)।
०४. १६१८ औरंगजेब जन्म, १८२२ दिल्ली जल आपूर्ति योजन आरंभ, १८८३ स्वामी दयानन्द निर्वाण (जन्म १२-२-१८२४), १९३९ गणितज्ञ शकुंतला देवी जन्म, १९४५ आज़ाद हिंद फौजियों पर लाल किला मुक़दमा, १९५४ हिमालय पर्वतारोहण संस्थान दार्जिलिंग स्थापना, १९८४ ओबी अग्रवाल एमेच्योर स्नूकर विश्व चैम्पियन, १९९७ सियाचीन बेस कैम्प विश्व का सर्वाधिक ऊँचा एस.टी.डी. बूथ स्थापित, २००० दूरदर्शन डायरेक्ट टु होम सेवा, २००८ गंगा राष्ट्रीय नदी घोषित, पहला भारतीय मानवरहित अंतरिक्ष यान चंद्र कक्षा में, बराक ओबामा अफ़्रीकी मूल के प्रथम अमरीकी राष्ट्रपति, दीपावली।
०५. १५५६ पानीपत द्वितीय युद्ध अकबर ने हेमू को हराया, १६३० स्पेन-इंग्लैंड शांति समझौता, १८७० चितरंजन दास जन्म, १९१७ बनारसी दास गुप्ता जन्म, १९२० इंडियन रेडक्रॉस सोसायटी स्थापित, १९३० अर्जुन सिंह जन्म,१९९९ गेंदबाज मैल्कम मार्शल निधन, २००७ प्रथम चीनी यान चंद्र कक्षा में, २०१३ मंगल परिक्रमा अभियान रॉकेट प्रक्षेपण, अन्नकूट-गोवर्धन पूजा।
०६. १८६० अब्राहम लिंकन अमरीकी राष्ट्रपति, १९०३ पनामा स्वतंत्र, १९१३ द. अफ्रीका गांधी जी बंदी, १९४३ जापान ने अंदमान-निकोबार नेताजी को सौंपे, १९६२ राष्ट्रीय रक्षा परिषद्, १९८५ अभिनेता संजीव कुमार निधन, यम द्वितीया, चित्रगुप्त पूजा, भाई दूज।
०७. १६२७ बहादुरशाह द्वितीय निधन रंगून, १८५८ बिपिनचंद्र पाल जन्म, १८७६ बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय वंदे मातरम लिखा, १८८८ चंद्रशेखर वेंकट रमन जन्म, १९१७ रूस बोल्शेविक क्रांति सफल, १९३६ चंद्रकांत देवताले जन्म, १९५४ कमल हासन जन्म, विश्वामित्र जयंती।
०८. १९४५ हॉन्गकॉन्ग नौका दुर्घटना १५५० मरे, १९८८ चीन भूकंप ९०० मरे, २००८ प्रथम भारतीय मानवरहित अंतरिक्ष यान चंद्रकक्षा में, २०१६ भारत नोट विमुद्रीकरण,
०९. १२७० संत नामदेव जयंती, १८१८ इवान तुर्गेनेव जन्म, १८६२ कलकत्ता उच्च न्यायालय उद्घाटन, १८७७ इक़बाल जन्म, १९०४ वनस्पति विज्ञानी पंचानन माहेश्वरी जन्म, १९३६ सुदामा पाण्डे धूमिल जन्म, १९४८ जूनागढ़ भारत में विलय, १९५३ कंबोडिया स्वतंत्र, १९८९ ब्रिटेन मृत्यु दंड समाप्त, २००० उत्तराखंड दिवस, राष्ट्रीय क़ानूनी सेवा दिवस।
१०. १६५९ शिवजी ने प्रतापगढ़ दुर्ग के निकट अफ़ज़ल खान को मारा, १६९८ ईस्ट इंडिया कंपनी ने कलकत्ता ख़रीदा, १८४८ सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी जन्म, १८८५ गोटलिएब डेमलेर पहली मोटर साईकिल, १९२० दत्तोपंत ठेंगड़ी जन्म, सदानंद बकरे शिल्पकार-मूर्तिकार जन्म, १९६३ रोहिणी खाडिलकर प्रथम एशियाई शतरंज चैम्पियनशिप १९८१विजेता, १९७० फ़्रांस राष्ट्रपति डगाल दिवंगत, १९७५ अंकोला स्वतंत्र, १९८२ बिल गेट विंडो १ आरंभ, १९८९ बर्लिन जर्मन दीवार गिराना आरंभ, १९९० चंद्रशेखर भारत के प्रधान मंत्री, २००१ भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ने संयुक्त राष्ट्र संघ को संबोधित किया, २००२ ऑस्ट्रेलिया ने इंग्लैंड से पहला ऐशेस मैच जीता, छठ पूजा।
११. १६७५ गोबिंद सिंह सिख गुरु बने, १८८८ मौलाना अबुल कलाम आज़ाद-जे.बी.कृपलानी जन्म, १९१८ पोलैंड स्वतंत्र, १९३६ माला सिन्हा जन्म, १९४३ परमाणु वैज्ञानिक अनिल काकोडकर जन्म, १९६२ कुवैत संविधान दिवस, १९७३ डाक टिकिट प्रथम अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी दिल्ली, १९७५ अंगोला स्वतंत्र, , राष्ट्रीय शिक्षा दिवस, जलाराम बापा जयंती, सहस्त्रबाहु जयंती।
१२. १८४७ सर जेम्स यंग सिमसन क्लोरोफॉर्म का पहला औषधीय प्रयोग, १८९६ पक्षी विज्ञानी सालिम अली जन्म,१९१८ ऑस्ट्रिया गणतंत्र बना, १९३० प्रथम गोलमेज सम्मेलन लंदन, १९३६ केरल मंदिर सब हिन्दुओं हेतु खुले, १०४० अमजद खान जन्म, १९४६ मदनमोहन मालवीय निधन, २००८ बालासोर परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम के १५ का सफल परीक्षण, प्रथम भारतीय मानवरहित अंतरिक्ष यान चंद्रमा की अंतिम कक्षा में स्थापित, २००९ अतुल्य भारत अभियान वर्ल्ड ट्रेवेल अवार्ड २००८ प्राप्त, गोपाष्टमी।
१३. १७८० रंजीत सिंह पंजाब शासक, १८९२ रायकृष्ण दास जन्म, १८९५ सी के नायडू जन्म, १८९८ सारदा माँ ने भगिनी निवेदिता के विद्यालय का उद्घाटन किया, १९१७ मुक्तिबोध जन्म, १९१८ ऑस्ट्रिया गणराज्य, १९६७ मीनाक्षी शेषाद्रि जन्म, १९६७ जुही चावला जन्म, १९७१ नासा मैरीनर ९ यान मंगल कक्षा में, १९७५ विश्व स्वास्थ्य संगठन एशिया चेचक मुक्त, १९८५ पूर्वी कोलंबिया ज्वालामुखी २३,००० मरे, २०१३ हरिकृष्ण देवसरे निधन, आंवला / अक्षय नवमी।
१४. १८८९ जवाहर लाल नेहरू जन्म, १९२२ बी बी सी रेडियो सेवा, १९२६ पीलू मोदी जन्म, १९५५ कर्मचारी राज्य बीमा निगम उद्घाटित, १९५७ बाल दिवस आरंभ, विश्व मधुमेह दिवस, १९७७ श्रील भक्तिवेदांत प्रभुपाद दिवंगत।
१५. १८७५ बिरसा मुंडा जन्म, १९२० लीग ऑफ़ नेशंस प्रथम बैठक जिनेवा, १९३७ जयशंकर प्रसाद निधन, १९३८ महात्मा हंसराज निधन, १९४९ नाथूराम गोडसे-नारायम दत्तात्रेय आप्टे को फाँसी,१९८२ विनोबा भावे निधन पवनार, १९८६ सानिया मिर्ज़ा जन्म, १९८८ फिलिस्तीन स्वतंत्र राष्ट्र घोषित, २००७ चिली भूकंप ७.७ रिक्टर, झारखण्ड दिवस, २०१७ कुंवर नारायण निधन, तुलसी विवाह, कालिदास जयंती।
१६. १९०७ शंभु महाराज जन्म, १९२७ श्रीराम लागु जन्म, १९३० मिहिर सेन जन्म, १९७३ पुलेला गोपीचंद जन्म, २०१३ सचिन तेंडुलकर भारत रत्न, राष्ट्रीय प्रेस दिवस, विश्व सहिष्णुता दिवस।
१७. १५५८ एलिजाबेथ प्रथम सत्तासीन, १९०० पद्मजा नायडू जन्म, १९२८ लाला लाजपत राय शहीद, १९३२ तीसरा गोलमेज सम्मलेन, १९६६ रीता फारिया मिस वर्ल्ड, १९७० रुसी लूनाखोद १ चंद्र तल पर, १९९९ अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस। ।
१८. १७२७ जयपुर दिवस वास्तुकार विद्याधर चक्रवर्ती, १७३८ फ़्रांस-ऑस्ट्रिया शांति समझौता, १८३३ हालेंड-बेल्जियम जोनहोवेन संधि, १९०१ वी. शांताराम जन्म, १९१० क्रन्तिकारी बटुकेश्वर दत्त जन्म, १९१८ लातविया स्वतंत्र, १९४६ कमलनाथ जन्म, १९४८ पटना स्टीमर नारायणी जलमग्न ५०० मरे, १९५६ मोरक्को स्वतंत्र, १९७२ बाघ राष्ट्रीय पशु, २०१३ नासा मंगल पर यान भेजा, २०१७ मानसी छिल्लर मिस वर्ल्ड।
१९. १८२४ रूस सेंट पीटरसबर्ग बाढ़ १०,००० मरे, १८२८ रानी लक्ष्मी बाई जन्म, १८९५ फ्रेडरिक ई ब्लेसडेल पेंसिल का पेंटेट, १९२८ दारासिंह जन्म,१९३३ स्पेन महिला मताधिकार, १८३८ केशवचन्द्र सेन, १९१७ इंदिरा गाँधी जन्म, १९८२ नौवाँ एशियाई खेल आरंभ, १९९५ कर्णम मल्लेश्वरी भारोत्तोलन विश्व रिकॉर्ड, १९९४ ऐश्वर्या राय मिस वर्ल्ड, १९९७ कल्पना चावला प्रथम भारतीय महिला अंतरिक्ष यात्री, २००८ मून इम्पैक्ट प्रोब चाँद पर उतरा, राष्ट्रीय एकता दिवस, गुरु नानक जयंती।
२०. १७५० टीपू सुल्तान जन्म, १९१७ यूक्रेन गणराज्य, १९२९ मिल्खा सिंह जन्म, १९८१ भास्कर उपग्रह प्रक्षेपित, १९८५ माइक्रोसॉफ्ट विंडोस १ जारी, १९१६ नायक यदुनाथ सिंह परमवीर चक्र, १९८९ बबीता फोगाट जन्म, २०१६ पी. वी, सिंधु चाइना ओपन सुपर सीरीज विजेता।
२१. १८७७ प्रथम फोनोग्राम थॉमस एल्वा एडिसन, १८९९ हरेकृष्ण महताब, १९१४ क्रांतिकारी उज्ज्वला मजूमदार, १९३१ ज्ञानरंजन जन्म, १९४७ प्रथम भारतीय डाक टिकिट, १९५६ शिक्षक दिवस प्रस्ताव पारित, १९६२ भारत-चीन युद्ध विराम, १९६३ प्रथम भारतीय रॉकेट प्रक्षेपित थुम्बा, १९७० सी वी रमन निधन।
२२. १८३० झलकारी बाई जन्म, १८६४ रुक्माबाई प्रथम भारतीय महिला चिकित्सक जन्म, १८९२ मीरा बेन जन्म, १९४८ सरोज खान जन्म, १९३९ मुलायम सिंह यादव जन्म, १९६३ अमरीकी राष्ट्रपति कैनेडी की हत्या, १९९७ डायना हेडेन मिस वर्ल्ड।
२३. १९१४ कृष्ण चंदर जन्म, १९२६ सत्य साईं जन्म, १९३० गीता दत्त, १९३७ जगदीशचंद्र बोस निधन, १९८३ भारत में प्रथम राष्ट्र मंडल शिखर सम्मेलन।
२४. १७५९ इटली विसूवियस ज्वालामुखी विस्फोट, १८५९ चार्ल्स डार्विन ऑन द ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीज प्रकाशित, १८६७ जोसेफ ग्लीडन अमेरिका कंटीले तार का पेटेंट, १९१९ महिपाल जन्म अभिनेता शायर, १९४४ अमोल पालेकर जन्म, १९५५ इयान बॉथम जन्म, १९२६ श्री अरोबिन्दो घोष सिद्धि दिवस, १९६२ अरुंधति रॉय जन्म, २००३ टुनटुन (उमादेवी) निधन, २०१५ महिप सिंह निधन।
२५. १८६६ इलाहाबाद उच्च न्यायालय उद्घाटित, १८६७ अल्फ्रेड नोबल डायनामाइट पेटेंट, १८९० सुनीत कुमार चटर्जी जन्म, १८९८ देवकी बोस जन्म, १९३० जापान भूकंप के ६९० झटके, १९४९ भारतीय संविधान हस्ताक्षरित व प्रभावी, १९७४ यू थांट निधन, १९८२ झूलन गोस्वामी जन्म।
२६. १८७० डॉ. हरिसिंह गौर जयंती, १९२६ प्रो. यशपाल जन्म, १९६० कानपूर-लखनऊ एस टी डी, २०१२ आम आदमी पार्टी गठित।
२७. १७९५ प्रथम बांगला नाटक मंचन, १८८५ उल्कापिंड प्रथम तस्वीर, १८९० ज्योतिबा फुले निधन, १८९५ नोबल पुरस्कार स्थापित, १९०७ हरिवंश राय बच्चन जन्म, १९३२ डॉन ब्रेडमैन दस हजार रन, १९४० ब्रूस ली जन्म, १९४२ मृदुला सिन्हा जन्म।
२८. १८२१ पनामा स्वतंत्र।
२९. १८६९ ठक्कर बापा जन्म, १९१३ अली सरदार ज़ाफ़री जन्म, १९६३ शरद सिंह।
३०. १७३१ बीजिंग भूकंप एक लाख मृत, १८५८ जगदीशचंद्र बोस जन्म, १८८८ क्रांतिकारी गेंदा लाल दीक्षित जन्म, मायानन्द चैतन्य जयंती, १९३१ रोमिला थापर जन्म, १९४४ मैत्रेयी पुष्पा जन्म, १९६५ गुड़िया संग्रहालय दिल्ली, २००० प्रियंका चोपड़ा मिस वर्ल्ड।
***
मुक्तिका
मापनी - २१२ २२१ २ २२१ २ १२
*
अंत की चिंता न कर; शुरुआत तो करें
मंज़िलों की चाहतें, फौलाद तो करें

है सियासत को न गम, जनता मरे- मरे
चाह सत्ता की न हो, हालात तो करें

रूठना भी, मानना भी, आपकी अदा
दूरियाँ नजदीकियाँ हों, बात तो करें

वायदों का क्या?, कहा क्या-क्या न याद है
कायदों को तोड़ने, फरियाद तो करें

कौन क्या लाया यहाँ?, क्या ले गया कहो?
कैद में है हर बशर, आज़ाद तो करें
३१-१०-२०२२
***
गीत
*
श्वास श्वास समिधा है
आस-आस वेदिका
*
अधरों की स्मित के
पीछे है दर्द भी
नयनों में शोले हैं
गरम-तप्त, सर्द भी
रौनकमय चेहरे से
पोंछी है गर्द भी
त्रास-त्रास कोशिश है
हास-हास साधिका
*
नवगीती बन्नक है
जनगीति मन्नत
मेहनत की माटी में
सीकर मिल जन्नत
करना है मंज़िल को
धक्का दे उन्नत
अभिनय के छंद रचे
नए नाम गीतिका
*
सपनों से यारी है
गर्दिश भी प्यारी है
बाधाओं को टक्कर
देने की बारी है
रोप नित्य हौसले
महकाई क्यारी है
स्वाति बूँद पा मुक्ता
रच देती सीपिका
***
छंद कार्यशाला -
२८ वार्णिक दण्डक छंद
विधान - २८ वार्णिक, ६-१४-१८-२३-२८ पर यति।
४३ मात्रिक, १०-११--७-६-९ पर यति।
गणसूत्र - र त न ज म य न स ज ग।
*
नाद से आल्हाद, झर कर ही रहेगा, देख लेना, समय खुद, देगा गवाही
अक्षरों में भाव, हर भर जी सकेगा, लेख लेना, सृजन खुद, देगा सुनाई
शब्द हो नि:शब्द, अनुभव ले सकेगा, सीख देगा, घुटन झट होगी पराई
भाव में संचार, रस भर पी सकेगा, लीक होगी, नवल फिर हो वाह वाही
*
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
९४२५१८३२४४
३१-१०-२०२१
***
मुक्तक
*
स्नेह का उपहार तो अनमोल है
कौन श्रद्धा-मान सकता तौल है?
भोग प्रभु भी आपसे ही पा रहे
रूप चौदस भावना का घोल है
*
स्नेह पल-पल है लुटाया आपने।
स्नेह को जाएँ कभी मत मापने
सही है मन समंदर है भाव का
इष्ट को भी है झुकाया भाव ने
*
फूल अंग्रेजी का मैं,यह जानता
फूल हिंदी की कदर पहचानता
इसलिए कलियाँ खिलता बाग़ में
सुरभि दस दिश हो यही हठ ठानता
*
उसी का आभार जो लिखवा रही
बिना फुरसत प्रेरणा पठवा रही
पढ़ाकर कहती, लिखूँगी आज पढ़
सांस ही मानो गले अटका रही
३१-१०-२०२०
***
गीत
*
श्वास श्वास समिधा है
आस-आस वेदिका
*
अधरों की स्मित के
पीछे है दर्द भी
नयनों में शोले हैं
गरम-तप्त, सर्द भी
रौनकमय चेहरे से
पोंछी है गर्द भी
त्रास-त्रास कोशिश है
हास-हास साधिका
*
नवगीती बन्नक है
जनगीति मन्नत
मेहनत की माटी में
सीकर मिल जन्नत
करना है मंज़िल को
धक्का दे उन्नत
अभिनय के छंद रचे
नए नाम गीतिका
*
सपनों से यारी है
गर्दिश भी प्यारी है
बाधाओं को टक्कर
देने की बारी है
रोप नित्य हौसले
महकाई क्यारी है
स्वाति बूँद पा मुक्ता
रच देती सीपिका
३१-१०-२०१९
***
लघुकथा:
पटखनी
*
सियार के घर में उत्सव था। उसने अतिउत्साह में पड़ोस के नीले सियार को भी न्योता भेज दिया।
शेर को आश्चर्य हुआ कि उसके टुकड़ों पर पलनेवाला वफादार सियार उससे दगाबाजी करनेवाले नीले सियार को को आमंत्रित कर रहा है।
आमंत्रित नीले सियार को याद आया कि उसने विदेश में वक्तव्य दिया था: 'शेर को जंगल में अंतर्राष्ट्रीय देख-रेख में चुनाव कराने चाहिए'।
सियार लोक में आपके विरुद्ध आंदोलन, फैसले और दहशतगर्दी पर आपको क्या कहना है? किसी पत्रकार ने पूछा तो उसे दुम दबाकर भागना पड़ा था।
'शेर तो शेरों की जमात का नेता है, सियार उसे अपना नुमाइंदा नहीं मानते' नीले सियार ने आते ही वक्तव्य दिया तो केले खा रहे बंदरों ने तुरंत कुलाटियाँ खाते हुए उछल-कूदकर चैनलों पर बार-बार यही राग अलापना शुरू कर दिया।
'हम सियार तो नीले सियार को अपने साथ बैठने लायक भी नहीं मानते, नेता कैसे हो सकता है वह हमारा?' आमंत्रणकर्ता युवा सियार ने पूछा।
'सूरज पर थूकने से सूरज मैला नहीं होता, अपना ही मुँह गन्दा होता है' भालू ने कहा।
'शेर सिर्फ शेरों का नहीं पूरे जंगल का नेता है' कोयल ने कहा 'लेकिन उसे भी केवल शेरों के हितों की बात न कर, अन्य प्रजाति के पशु-पक्षियों के भी हित साधने चाहिए।'
'जानवरों के बीच नफरत फ़ैलाने और दूरियाँ बढ़ानेवाले घातक समाचार बार-बार प्रसारित करनेवाले बिकाऊ बंदरों पर कार्यवाही हो। कोटि-कोटि जनता का अनमोल समय और बर्बाद करने का हक़ इन्हें किसने दिया?' भीड़ को गरम होता देखकर बंदरों और नीले सियार को होना पड़ा नौ दो ग्यारह।
सभी विस्मित रह गये चुनाव का परिणाम देखकर कि मतदाताओं ने कोयल को विजयी बनाकर शेर और नीले सियार दोनों को दे दी थी पटखनी।
***
३१-१०-२०१४
***

Sunday, October 30, 2022

सॉनेट, वर्षा, दिल , शे'र, नवगीत, सांध्य सुंदरी, लक्ष्मी, लघुकथा,

सॉनेट
भोर
*
भोर भई जागो रे भाई!
बिदा करो, अरविंद जा रहा।
सुनो प्रभाती, सूर्य आ रहा।।
प्राची पर छाई अरुणाई।।

गौरैया मुँडेर पर चहकी।
फल कुतरे झट झपट गिलहरी।
टिट् टिट् मिलती गले टिटहरी।।
फुलबगिया मुस्काई-महकी।।

चंपा पर रीझा है गेंदा।
जुही-चमेली लख सकुँचाई
सदा सुहागिन सोहे बेंदा।।

नेह नर्मदा कूद नहाएँ
चपल रश्मियाँ छप् छपाक् कर
सोनपरी हो लहर सिहाए।।
३०-१०-२०२२, ९•११
●●●
सॉनेट
बारिश तुम फिर
१.
बारिश तुम फिर रूठ गई हो।
तरस रहा जग होकर प्यासा।
दुबराया ज्यों शिशु अठमासा।।
मुरझाई हो ठूठ गई हो।।

कुएँ-बावली बिलकुल खाली।
नेह नर्मदा नीर नहीं है।
बेकल मन में धीर नहीं है।।
मुँह फेरे राधा-वनमाली।।

दादुर बैठे हैं मुँह सिलकर।
अंकुर मरते हैं तिल-तिलकर।
झींगुर संग नहीं हिल-मिलकर।

बीरबहूटी हुई लापता।
गर्मी सबको रही है सता।
जंगल काटे, मनुज की खता।।
*
२.
मान गई हो, बारिश तुम फिर।
सदा सुहागिन सी हरियाईं।
मेघ घटाएँ नाचें घिर-घिर।।
बरसीं मंद-मंद हर्षाईं।।

आसमान में बिजली चमकी।
मन भाई आधी घरवाली।
गिरी जोर से बिजली तड़की।।
भड़क हुई शोला घरवाली।।

तन्वंगी भीगी दिल मचले।
कनक कामिनी देह सुचिक्कन।
दृष्टि न ठहरे, मचले-फिसले।।
अनगिन सपने देखे साजन।।

सुलग गई हो बारिश तुम फिर।
पिघल गई हो बारिश तुम फिर।।
*
३.
क्रुद्ध हुई हो बारिश तुम फिर।
सघन अँधेरा आया घिर घिर।।
बरस रही हो, गरज-मचल कर।
ठाना रख दो थस-नहस कर।।

पर्वत ढहते, धरती कंपित।
नदियाँ उफनाई हो शापित।।
पवन हो गया क्या उन्मादित?
जीव-जंतु-मनु होते कंपित।।

प्रलय न लाओ, कहर न ढाओ।
रूद्र सुता हे! कुछ सुस्ताओ।।
थोड़ा हरषो, थोड़ा बरसो।
जीवन विकसे, थोड़ा सरसो।।

भ्रांत न हो हे बारिश! तुम फिर।
शांत रही हे बारिश! हँस फिर।।
३०-१०-२०२२
***
लघुकथा
कौन जाने कब?
*
'बब्बा! भाग्य बड़ा होता है या कर्म?' पोते ने पूछा।
''बेटा! दोनों का अपना-अपना महत्व है, दोनों में से किसी एक को बड़ा और दूसरे को छोटा नहीं कहा जा सकता।''
'दोनों की जरूरत ही क्या है? क्या एक से काम नहीं चल सकता?'
''तुम्हारे पापा-मम्मी का बैंक में लॉकर है न?''
'हाँ, है।'
''लॉकर की क्या जरूरत है?''
'मम्मी ने बताया था कि घर में रखने से कीमती सामान की चोरी हो सकती है। इसलिए बैंक में सुरक्षित स्थान लेकर वहाँ कीमती सामान रखते हैं।'
'' शाबाश! लॉकर की चाबी किसके पास होती हैं?''
'पापा से पूछा था मैंने। पापा ने बताया कि लॉकर में दो ताले होते हैं। एक की चाबी बैंक के प्रबंधक तथा दूसरी की लॉकर खोलने वाले के पास होती है।'
''ऐसा क्यों?''
'क्या बब्बा! आपको कुछ भी नहीं मालूम क्या?, मैं आपसे पूछने आया था आप मुझसे ही पूछते जा रहे हो।'
''तुम इस सवाल का जवाब बताओ, फिर मैं तुम्हारे सवाल का जवाब दूँगा।''
'ठीक है, सवाल जरूर बताना। यह यह नहीं कि मुझसे पूछ लो और फिर मेरे सवाल का जवाब न बताओ।'
''नहीं, तुम्हारे सवाल का जवाब जरूर बताऊँगा।''
'ठीक है, फिर सुनों। मम्मी-पापा जब लॉकर खोलने जाते हैं, तब मैनेजर पहले अपनी चाबी लगाकर एक ताला खोलता है और चला जाता है, तब मम्मी-पापा अपनी चाबी से दूसरा ताला खोलकर सामान रखते-निकालते हैं, फिर लॉकर बंद कर देते हैं। तब मैनेजर अपनी चाबी से दूसरा लॉकर बंद करता है।'
''वाह, तुम तो बहुत होशियार हो। अब आखिरी प्रश्न का उत्तर दो। दो ताले क्यों जरूरी हैं?''
'इसलिए कि मम्मी-पापा सामान रख दें तो मैनेजर या कोई दूसरा चुपचाप निकल न सके। दूसरी तरफ कोइ ग्राहक चुपचाप सामान निकालकर बैंक पर चोरी का आरोप लगाकर सामान न माँगने लगे।'
''क्या बात है? अब तो तुम्हारे प्रश्न का उत्तर तुमने ही दे दिया है।''
'वह कैसे?'
''वह ऐसे कि बैंक मैनेजर के पास जो चाबी है वह है भाग्य। तुम्हारे मम्मी-पापा के पास जो चाबी है, वह है कर्म। कर्म और भाग्य दोनों चाबी एक साथ लगाए बिना लॉकर नहीं खुलता।''
'यह तो आप ठीक कह रहे हैं, पर मेरा सवाल?'
''यही तो तुम्हारे सवाल का जवाब है। तुम्हारी तुम जो पाना चाहते हो वह है लॉकर, मेहनत एक चाबी है जो तुम्हारे पास है और भाग्य दूसरी चाबी है जो भगवान या किस्मत के पास है। चाहत का लॉकर खोलने के लिए दोनों चाबियाँ लगाना जरूरी है। भगवान या किस्मत अपनी चाबी कब लगाएगी तुम्हें नहीं मालूम। तुम उनसे चाबी लगवा भी नहीं सकते। लेकिन जब वह चाबी लगे तब भी चाहत का लॉकर नहीं खुलेगा यदि तुम्हारी कोशिश की चाबी न लगी हो।''
'समझ गया, समझ गया। आप कह रहे हो कि मैं चाहत का लॉकर खोलने के लिए, कोशिश की चाबी बार-बार लगाता रहूँ। जैसे ही किस्मत की चाबी लगेगी, चाहत का लॉकर खुल जाएगा। समझ गया, अच्छा बब्बा चलता हूँ।'
''कहाँ चल दिए?''
'और कहाँ?, अपना बस्ता लेकर गणित का सवाल हल करने की कोशिश करने। परीक्षा परिणाम का लॉकर खोलना है न। खुलेगा ही लेकिन कौन जाने कब?'
***

नव प्रयोग
*
छंद सूत्र: य न ल
*
मुक्तक-
मिलोगी जब तुम,
मिटेंगे तब गम।
खिलेंगे नित गुल
हँसेंगे मिल हम।।
***
मुक्तिका -
हँसा है दिनकर
उषा का गह कर।
*
कहेगी सरगम
चिरैया छिपकर।
*
अँधेरा डरकर
गया है मरकर।
*
पियेगा जल नित
मजूरा उठकर।
*
न नेता सुखकर
न कोई अफसर। 
* 
सुसिंधु सलिलज
सुमेघ जलधर।  
*
कबीर सच कह 
अमीर धन धर। 
३०-१०-२०१८
***
चंद अश'आर
दिल
*
इस दिल की बेदिली का आलम न पूछिए
तूफ़ान सह गया मगर क़तरे में बह गया
*
दिलदारों की इस बस्ती में दिलवाला बेमौत मरा
दिल के सौदागर बन हँसते मिले दिलजले हमें यहाँ
*
दिल पर रीझा दिल लेकिन बिल देख नशा काफूर हुआ
दिए दिवाली के जैसे ही बुझे रह गया शेष धुँआ
*
दिलकश ने ही दिल दहलाया दिल ले कर दिल नहीं दिया
बैठा है हर दिल अज़ीज़ ले चाक गरेबां नहीं सिया
*
नवगीत:
सांध्य सुंदरी
तनिक न विस्मित
न्योतें नहीं इमाम
जो शरीफ हैं नाम का
उसको भेजा न्योता
सरहद-करगिल पर काँटों की
फसलें है जो बोता
मेहनतकश की
थकन हरूँ मैं
चुप रहकर हर शाम
नमक किसी का, वफ़ा किसी से
कैसी फितरत है
दम कूकुर की रहे न सीधी
यह ही कुदरत है
खबरों में
लाती ही क्यों हैं
चैनल उसे तमाम?
साथ न उसके मुसलमान हैं
बंदा गंदा है
बिना बात करना विवाद ही
उसका धंधा है
थूको भी मत
उसे देख, मत
करना दुआ-सलाम
***
नवगीत:
राष्ट्रलक्ष्मी!
श्रम सीकर है
तुम्हें समर्पित
खेत, फसल, खलिहान
प्रणत है
अभियन्ता, तकनीक
विनत है
बाँध-कारखाने
नव तीरथ
हुए समर्पित
कण-कण, तृण-तृण
बिंदु-सिंधु भी
भू नभ सलिला
दिशा, इंदु भी
सुख-समृद्धि हित
कर-पग, मन-तन
समय समर्पित
पंछी कलरव
सुबह दुपहरी
संध्या रजनी
कोशिश ठहरी
आसें-श्वासें
झूमें-खांसें
अभय समर्पित
शैशव-बचपन
यौवन सपने
महल-झोपड़ी
मानक नापने
सूरज-चंदा
पटका-बेंदा
मिलन समर्पित
***
नवगीत:
हर चेहरा है
एक सवाल
शंकाकुल मन
राहत चाहे
कहीं न मिलती.
शूल चुभें शत
आशा की नव
कली न खिलती
प्रश्न सभी
देते हैं टाल
क्या कसूर,
क्यों व्याधि घेरती,
बेबस करती?
तन-मन-धन को
हानि अपरिमित
पहुँचा छलती
आत्म मनोबल
बनता ढाल
मँहगा बहुत
दवाई-इलाज
दिवाला निकले
कोशिश करें
सम्हलने की पर
पग फिर फिसले
किसे बताएं
दिल का हाल?
***
संजीवनी अस्पताल, रायपुर
२९-११-२०१४

Saturday, October 29, 2022

नवगीत, भाई दूज, सॉनेट, रामकिशोर, हाइकु,

सॉनेट 
रामकिशोर 
*
मधुर मधुर मुस्कान बिखेरें
दर्द न दिल का कभी दिखाते
हर नाते को पुलक सहेजें 
अनजाने को भी अपनाते

वाणी मधुर स्नेह सलिला सम
झट हिल-मिल गुल सम खिल जाते
लगता दूर हो गया है तम
प्राची से दिनकर प्रगटाते

शब्दों की मितव्ययिता बरते
कविताओं में सत्य समय का
लिखें लेख पैने मन-चुभते 
भान न लेकिन कहीं अनय का

चेहरे छाई रहती भोर 
 देते खुशियाँ रामकिशोर
*
***
हाइकु 
*
करो वंदन
निशि हुई हाइकु
गीत निशीश।
*
मुदित मन
जिज्ञासु हो दिमाग
राग-विराग।
*
चश्मा देखता
चकित चित मौन
चश्मा बहता।
*
अभिनंदन
माहिया-हाइकु का
रोली-चंदन।
*
झूमा आकाश 
महमहाया चाँद
लिए चाँदनी।
*
आज की शाम 
फुनगी पर चाँद
झूम नाचता
२८-१०-२०२२ 
***
भाई दूज पर विशेष रचना :
मेरे भैया
*
मेरे भैया!,
किशन कन्हैया...
*
साथ-साथ पल-पुसे, बढ़े हम
तुमको पाकर सौ सुख पाये.
दूर हुए एक-दूजे से हम
लेकिन भूल-भुला न पाये..
रूठ-मनाने के मधुरिम दिन
कहाँ गये?, यह कौन बताये?
टीप रेस, कन्ना गोटी है कहाँ?
कहाँ है 'ता-ता थैया'....
*
मैंने तुमको, तुमने मुझको
क्या-क्या दिया, कौन बतलाये?
विधना भी चाहे तो स्नेहिल
भेंट नहीं वैसी दे पाये.
बाकी क्या लेना-देना? जब
हम हैं एक-दूजे के साये.
भाई-बहिन का स्नेह गा सके
मिला न अब तक कोई गवैया....
*
देकर भी देने का मन हो
देने की सार्थकता तब ही.
तेरी बहिना हँसकर ले-ले
भैया का दुःख विपदा अब ही..
दूज-गीत, राखी-कविता संग
तूने भेजी खुशियाँ सब ही.
तेरी चाहत, मेरी ताकत
भौजी की सौ बार बलैंया...
२९-१०-२०१९
***
नवगीत:
आओ रे!
मतदान करो
भारत भाग्य विधाता हो
तुम शासन-निर्माता हो
संसद-सांसद-त्राता हो
हमें चुनो
फिर जियो-मरो
कैसे भी
मतदान करो
तूफां-बाढ़-अकाल सहो
सीने पर गोलियाँ गहो
भूकंपों में घिरो-ढहो
मेलों में
दे जान तरो
लेकिन तुम
मतदान करो
लालटेन, हाथी, पंजा
साड़ी, दाढ़ी या गंजा
कान, भेंगा या कंजा
नेता करनी
आप भरो
लुटो-पिटो
मतदान करो
पाँच साल क्यों देखो राह
जब चाहो हो जाओ तबाह
बर्बादी को मिले पनाह
दल-दलदल में
फँसो-घिरो
रुपये लो
मतदान करो
नाग, साँप, बिच्छू कर जोड़
गुंडे-ठग आये घर छोड़
केर-बेर में है गठजोड़
मत सुधार की
आस धरो
टैक्स भरो
मतदान करो
***
(कश्मीर तथा अन्य राज्यों में चुनाव की खबर पर )
sanjivani hospital raipur
29-11-1014.
***
नवगीत:
ज़िम्मेदार
नहीं है नेता
छप्पर औरों पर
धर देता
वादे-भाषण
धुआंधार कर
करे सभी सौदे
उधार कर
येन-केन
वोट हर लेता
सत्ता पाते ही
रंग बदले
यकीं न करना
किंचित पगले
काम पड़े
पीठ कर लेता
रंग बदलता
है पल-पल में
पारंगत है
बेहद छल में
केवल अपनी
नैया खेता
***

***

नवगीत:
सुख-सुविधा में
मेरा-तेरा
दुःख सबका
साझा समान है
पद-अधिकार
करते झगड़े
अहंकार के
मिटें न लफ़ड़े
धन-संपदा
शत्रु हैं तगड़े
परेशान सब
अगड़े-पिछड़े
मान-मनौअल
समाधान है
मिल-जुलकर जो
मेहनत करते
गिरते-उठते
आगे बढ़ते
पग-पग चलते
सीढ़ी चढ़ते
तार और को
खुद भी तरते
पगतल भू
करतल वितान है
***
२८ -११-२०१४
संजीवनी चिकित्सालय रायपुर
***
नवगीत:
*
देव सोये तो
सोये रहें
हम मानव जागेंगे
राक्षस
अति संचय करते हैं
दानव
अमन-शांति हरते हैं
असुर
क्रूर कोलाहल करते
दनुज
निबल की जां हरते हैं
अनाचार का
शीश पकड़
हम मानव काटेंगे
भोग-विलास
देवता करते
बिन श्रम सुर
हर सुविधा वरते
ईश्वर पाप
गैर सर धरते
प्रभु अधिकार
और का हरते
हर अधिकार
विशेष चीन
हम मानव वारेंगे
मेहनत
अपना दीन-धर्म है
सच्चा साथी
सिर्फ कर्म है
धर्म-मर्म
संकोच-शर्म है
पीड़ित के
आँसू पोछेंगे
मिलकर तारेंगे
***
२८ -११-२०१४
संजीवनी चिकित्सालय रायपुर

Thursday, October 27, 2022

नवगीत, लक्ष्मी, दीवाली, पुस्तकालय, चित्रगुप्त, यम द्वितीया, दीवाली

नवगीत
लछमी मैया!
माटी का कछु कर्ज चुकाओ
*
देस बँट रहो,
नेह घट रहो,
लील रई दीपक खों झालर
नेह-गेह तज देह बजारू
भई; कैत है प्रगतिसील हम।
हैप्पी दीवाली
अनहैप्पी बैस्ट विशेज से पिंड छुड़ाओ
*
मूँड़ मुड़ाए
ओले पड़ रए
मूरत लगे अवध में भारी
कहूँ दूर बनवास बिता रई
अबला निबल सिया-सत मारी
हाय! सियासत
अंधभक्त हौ-हौ कर रए रे
तनिक चुपाओ
*
नकली टँसुए
रोज बहाउत
नेता गगनबिहारी बन खें
डूब बाढ़ में जनगण मर रओ
नित बिदेस में घूमें तन खें
दारू बेच;
पिला; मत पीना कैती जो
बो नीति मिटाओ
***

***
एक रचना
*
दिल जलता है तो जलने दे
दीवाली है
आँसू न बहा फरियाद न कर
दीवाली है
दीपक-बाती में नाता क्या लालू पूछे
चुप घरवाला है, चपल मुखर घरवाली है
फिर तेल धार क्या लगी तनिक यह बतलाओ
यह दाल-भात में मूसल रसमय साली है
जो बेच-खरीद रहे उनको समधी जानो
जो जला रही तीली सरहज मतवाली है
सासू याद करे अपने दिन मुस्काकर
साला बोला हाथ लगी हम्माली है
सखी-सहेली हवा छेड़ती जीजू को
भभक रही लौ लाल न जाए सँभाली है
दिल जलता है तो जलने दे दीवाली है
आँसू न बहा फरियाद न कर दीवाली है
२७-१०-२०१९
***
एक रचना
*
अर्चना कर सत्य की, शिव-साधना सुन्दर करें।
जग चलें गिर उठ बढ़ें, आराधना तम हर करें।।
*
कौन किसका है यहाँ?, छाया न देती साथ है।
मोह-माया कम रहे, श्रम-त्याग को सहचर करें।।
*
एक मालिक है वही, जिसने हमें पैदा किया।
मुक्त होकर अहं से, निज चित्त प्रभु-चाकर करें।।
*
वरे अक्षर निरक्षर, तब शब्द कविता से मिले।
भाव-रस-लय त्रिवेणी, अवगाह चित अनुचर करें।।
*
पूर्णिमा की चंद्र-छवि, निर्मल 'सलिल में निरखकर।
कुछ रचें; कुछ सुन-सुना, निज आत्म को मधुकर करें।।
करवा चौथ २७-१०-२०१८
जबलपुर
***
शांति-राज पारिवारिक पुस्तकालय योजना
*
विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर के तत्वावधान में नई पीढ़ी के मन में हिंदी के प्रति प्रेम तथा भारतीय संस्कारों के प्रति लगाव तभी हो सकता है जब वे बचपन से सत्साहित्य पढ़ें। 
क्या आपने पांच महापर्वों के अवसर पर बच्चों को हिंदी साहित्य की कोई पुस्तक उपहार में दी है ? यदि नहीं तो कभी नहीं से देर भली अब दे दीजिए। 
जान ब्याह राखी तिलक, गृह प्रवेश त्यौहार। 
सलिल बचा; पौधे लगा, दें पुस्तक उपहार।।  
नई पीढ़ी में पुस्तक संस्कृति के प्रति प्रेम जागृत करने उद्देश्य से पारिवारिक पुस्तकालय योजना आरम्भ की जा रही है। इस योजना के अंतर्गत निम्न में से ५००/- से अधिक की पुस्तकें मँगाने पर मूल्य में २०% छूट, पैकिंग व डाक व्यय निशुल्क की सुविधा उपलब्ध है। पुस्तक खरीदने के लिए ९४२५१८३२४४ पर पे टी एम कर सूचित करें।
पुस्तक सूची
काव्य
०१. मीत मेरे कविताएँ -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' १५०/-
०२. काल है संक्रांति का गीत-नवगीत संग्रह -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ३००/-
०३. कुरुक्षेत्र गाथा खंड काव्य -स्व. डी.पी.खरे -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ३००/-
०४. सड़क पर नवगीत संग्रह -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल २५०/-
०५. २१ श्रेष्ठ बुंदेली लोक कथाएँ मध्य प्रदेश  -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल १५०/-  
०६. २१ श्रेष्ठ आदिवासी लोक कथाएँ मध्य प्रदेश  -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल १५०/-
०७. आदमी अभी जिन्दा है लघुकथा संग्रह  -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल ३७०/-
०८. ओ मेरी तुम नवगीत संग्रह  -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल ३००/-
०९. लोकतंत्र का मक़बरा काव्य संग्रह  -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल ३००/-
१०. कलम के देव भक्ति गीत संग्रह -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' २००/-
११. पहला कदम काव्य संग्रह -डॉ. अनूप निगम १००/-
१२. कदाचित काव्य संग्रह - स्व. सुभाष पांडे १२०/-
१३. Off And On -English Gazals Dr. Anil Jain ८०/-
१४. यदा-कदा -उक्त का हिंदी काव्यानुवाद- डॉ. बाबू जोसफ-स्टीव विंसेंट १२०/-
१५. Contemporary Hindi Poetry - B.P. Mishra 'Niyaz' ३००/-
१६. महामात्य महाकाव्य दयाराम गुप्त 'पथिक' ३५०/-
१७. कालजयी महाकाव्य दयाराम गुप्त 'पथिक' २२५/-
१८ . सूतपुत्र महाकाव्य दयाराम गुप्त 'पथिक' १२५/-
१९. अंतर संवाद कहानियाँ रजनी सक्सेना २००/-
२०. दोहा-दोहा नर्मदा दोहा संकलन सं. सलिल-डॉ. साधना वर्मा २५०/-
२१. दोहा सलिला निर्मला दोहा संकलन सं. सलिल-डॉ. साधना वर्मा २५०/-
२२. दोहा दिव्य दिनेश दोहा संकलन सं. सलिल-डॉ. साधना वर्मा ३००/-
२३. सड़क पर गीत-नवगीत संग्रह आचार्य संजीव 'सलिल' ३००/-
२४. The Second Thought - English Poetry - Dr .Anil Ashok Jain​ १५०/-
२५. जीतने की जिद कविता संग्रह -सरला वर्मा १२५/- 
२६. राम नाम सुखदाई भजन संग्रह -शांति देवी वर्मा १००/- 
२७. काव्य कालिंदी काव्य संग्रह -डॉ. संतोष शुक्ला, २५०/- 
२८. खुशियों की सौगात दोहा सतसई -डॉ. संतोष शुक्ला २५०/- 
२९. फुरकत ग़ज़ल संग्रह -विभा तिवारी १५०/- 
३०. सलिल एक साहित्यिक निर्झर  -मनोरमा जैन 'पाखी' २५०/-
***
नवगीत:
चित्रगुप्त को
पूज रहे हैं
गुप्त चित्र
आकार नहीं
होता है
साकार वही
कथा कही
आधार नहीं
बुद्धिपूर्ण
आचार नहीं
बिन समझे
हल बूझ रहे हैं
कलम उठाये
उलटा हाथ
भू पर वे हैं
जिनका नाथ
खुद को प्रभु के
जोड़ा साथ
फल यह कोई
नवाए न माथ
खुद से खुद ही
जूझ रहे हैं
पड़ी समय की
बेहद मार
फिर भी
आया नहीं सुधार
अकल अजीर्ण
हुए बेज़ार
नव पीढ़ी का
बंटाधार
हल न कहीं भी
सूझ रहे हैं
***
नवगीत:
ऐसा कैसा
पर्व मनाया ?
मनुज सभ्य है
करते दावा
बोल रहे
कुदरत पर धावा
कोई काम
न करते सादा
करते कभी
न पूरा वादा
अवसर पाकर
स्वार्थ भुनाया
धुआँ, धूल
कचरा फैलाते
हल्ला-गुल्ला
शोर मचाते
आज पूज
कल फेकें प्रतिमा
समझें नहीं
ईश की गरिमा
अपनों को ही
किया पराया
धनवानों ने
किया प्रदर्शन
लंघन करता
भूखा-निर्धन
फूट रहे हैं
सरहद पर बम
नहीं किसी को
थोड़ा भी गम
तजी सफाई
किया सफाया
***
दोहा सलिला :
कथ्य भाव रस छंद लय, पंच तत्व की खान
पड़े कान में ह्रदय छू, काव्य करे संप्राण
मिलने हम मिल में गये, मिल न सके दिल साथ
हमदम मिले मशीन बन, रहे हाथ में हाथ
हिल-मिलकर हम खुश रहें, दोनों बने अमीर
मिल-जुलकर हँस जोर से, महका सकें समीर.
मन दर्पण में देख रे!, दिख जायेगा अक्स
वो जिससे तू दूर है, पर जिसका बरअक्स
जिस देहरी ने जन्म से, अब तक करी सम्हार
छोड़ चली मैं अब उसे, भला करे करतार
माटी माटी में मिले, माटी को स्वीकार
माटी माटी से मिले, माटी ले आकार
मैं ना हूँ तो तू रहे, दोनों मिट हों हम
मैना - कोयल मिल गले, कभी मिटायें गम
२७-१०-२०१४
***
यम द्वितीया चित्रगुप्त पूजन पर विशेष भेंट:
भजन: १
प्रभु हैं तेरे पास में...
-- संजीव 'सलिल'
*
कहाँ खोजता मूरख प्राणी?, प्रभु हैं तेरे पास में...
*
तन तो धोता रोज न करता, मन को क्यों तू साफ रे!
जो तेरा अपराधी है, उसको कर दे हँस माफ़ रे..
प्रभु को देख दोस्त-दुश्मन में, तम में और प्रकाश में.
कहाँ खोजता मूरख प्राणी?, प्रभु हैं तेरे पास में...
*
चित्र-गुप्त प्रभु सदा चित्त में, गुप्त झलक नित देख ले.
आँख मूँदकर कर्मों की गति, मन-दर्पण में लेख ले..
आया तो जाने से पहले, प्रभु को सुमिर प्रवास में.
कहाँ खोजता मूरख प्राणी?, प्रभु हैं तेरे पास में...
*
मंदिर-मस्जिद, काशी-काबा मिथ्या माया-जाल है.
वह घट-घट कण-कणवासी है, बीज फूल-फल डाल है..
हर्ष-दर्द उसका प्रसाद, कडुवाहट-मधुर मिठास में.
कहाँ खोजता मूरख प्राणी?, प्रभु हैं तेरे पास में...
*
भजन: २
प्रभु हैं तेरे पास में...
*
जग असार सार हरि सुमिरन ,
डूब भजन में ओ नादां मन...
*
निराकार काया में स्थित,
हो कायस्थ कहाते हैं.
रख नाना आकार दिखाते,
झलक तुरत छिप जाते हैं..
प्रभु दर्शन बिन मन हो उन्मन,
प्रभु दर्शन कर परम शांत मन.
जग असार सार हरि सुमिरन ,
डूब भजन में ओ नादां मन...
*
कोई न अपना सभी पराये,
कोई न गैर सभी अपने हैं.
धूप-छाँव, जागरण-निद्रा,
दिवस-निशा प्रभु के नपने हैं..
पंचतत्व प्रभु माटी-कंचन,
कर मद-मोह-गर्व का भंजन.
जग असार सार हरि सुमिरन ,
डूब भजन में ओ नादां मन...
*
नभ पर्वत भू सलिल लहर प्रभु,
पवन अग्नि रवि शशि तारे हैं.
कोई न प्रभु का, हर जन प्रभु का,
जो आये द्वारे तारे हैं..
नेह नर्मदा में कर मज्जन,
प्रभु-अर्पण करदे निज जीवन.
जग असार सार हरि सुमिरन ,
डूब भजन में ओ नादां मन...
***
दीवाली के संग : दोहा का रंग

*
सरहद पर दे कटा सर, हद अरि करे न पार.
राष्ट्र-दीप पर हो 'सलिल', प्राण-दीप बलिहार..
*
आपद-विपदाग्रस्त को, 'सलिल' न जाना भूल.
दो दीपक रख आ वहाँ, ले अँजुरी भर फूल..
*
कुटिया में पाया जनम, राजमहल में मौत.
रपट न थाने में हुई, ज्योति हुई क्यों फौत??
*
तन माटी का दीप है, बाती चलती श्वास.
आत्मा उर्मिल वर्तिका, घृत अंतर की आस..
*
दीप जला, जय बोलना, दुनिया का दस्तूर.
दीप बुझा, चुप फेंकना, कर्म क्रूर-अक्रूर..
*
चलते रहना ही सफर, रुकना काम-अकाम.
जलते रहना ज़िंदगी, बुझना पूर्ण विराम.
*
सूरज की किरणें करें नवजीवन संचार.
दीपक की किरणें करें, धरती का सिंगार..
*
मन देहरी ने वर लिये, जगमग दोहा-दीप.
तन ड्योढ़ी पर धर दिये, गुपचुप आँगन लीप..
*
करे प्रार्थना, वंदना, प्रेयर, सबद, अजान.
रसनिधि है रसलीन या, दीपक है रसखान..
*
मन्दिर-मस्जिद, राह-घर, या मचान-खलिहान.
दीपक फर्क न जानता, ज्योतित करे जहान..
*
मद्यप परवाना नहीं, समझ सका यह बात.
साक़ी लौ ले उजाला, लाई मरण-सौगात..
२७-१०-२०११
*