Friday, January 21, 2022

सॉनेट

सॉनेट 
आवागमन 
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देह मृण्मय रहो तन्मय।
श्वास अगली है अनिश्चित।
गमन से क्यों हो कहें भय।।
लौट आना है सुनिश्चित।।

दूर करती अनबनों से।
क्या गलत है, क्या सही है?
मुक्त करती बंधनों से।।
मौत तो मातामही है।।

चाह करते जिंदगी की।
कशमकश में है गुजरती।
राह भूले बंदगी की।।
थके आ-जा दम ठहरती।।

डूब सूरज, उगे फिर कल
भूल किलकिल, करो खिलखिल।।
२२-१-२०२२
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