Saturday, July 24, 2010

चित्रगुप्त महिमा - आचार्य संजीव 'सलिल'

चित्रगुप्त महिमा - आचार्य संजीव 'सलिल'

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चित्र-चित्र में गुप्त जो, उसको विनत प्रणाम।
वह कण-कण में रम रहा, तृण-तृण उसका धाम ।

विधि-हरि-हर उसने रचे, देकर शक्ति अनंत।
वह अनादि-ओंकार है, ध्याते उसको संत।

कल-कल,छन-छन में वही, बसता अनहद नाद।
कोई न उसके पूर्व है, कोई न उसके बाद।

वही रमा गुंजार में, वही थाप, वह नाद।
निराकार साकार वह, नेह नर्मदा नाद।

'सलिल' साधना का वही, सिर्फ़ सहारा एक।
उस पर ही करता कृपा, काम करे जो नेक।

जो काया को मानते, परमब्रम्ह का अंश।
'सलिल' वही कायस्थ हैं, ब्रम्ह-अंश-अवतंश।

निराकार परब्रम्ह का, कोई नहीं है चित्र।
चित्र गुप्त पर मूर्ति हम, गढ़ते रीति विचित्र।

निराकार ने ही सृजे, हैं सारे आकार।
सभी मूर्तियाँ उसी की, भेद करे संसार।

'कायथ' सच को जानता, सब को पूजे नित्य।
भली-भाँति उसको विदित, है असत्य भी सत्य।

अक्षर को नित पूजता, रखे कलम भी साथ।
लड़ता है अज्ञान से, झुका ज्ञान को माथ।

जाति वर्ण भाषा जगह, धंधा लिंग विचार।
भेद-भाव तज सभी हैं, कायथ को स्वीकार।

भोजन में जल के सदृश, 'कायथ' रहता लुप्त।
सुप्त न होता किन्तु वह, चित्र रखे निज गुप्त।

चित्र गुप्त रखना 'सलिल', मन्त्र न जाना भूल।
नित अक्षर-आराधना, है कायथ का मूल।

मोह-द्वेष से दूर रह, काम करे निष्काम।
चित्र गुप्त को समर्पित, काम स्वयं बेनाम।

सकल सृष्टि कायस्थ है, सत्य न जाना भूल।
परमब्रम्ह ही हैं 'सलिल', सकल सृष्टि के मूल।

अंतर में अंतर न हो, सबसे हो एकात्म।
जो जीवन को जी सके, वह 'कायथ' विश्वात्म।
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3 comments:

  1. आचार्य जी ,

    सृष्टि के प्रारम्भ मे 'काया'से संबन्धित शिक्षा देने वाले 'कायस्थ'कहलाते थे । आज भी अस्पतालों आदि मे 'मेडिसिन डिपार्टमेंट'को 'काय चिकित्सा विभाग'कहा जाता है । धीरे-धीरे आबादी बढ्ने के साथ-साथ श्रम विभाजन के आधार पर शिक्षा को चार श्रेणियों मे बाँट दिया गया -
    1-जो ब्रह्म संबन्धित शिक्षा प्राप्त करते थे उन्हें 'ब्राह्मण'की डिग्री,
    2-जो शासन-प्रशासन,सैन्य शिक्षा प्राप्त करते उन्हें 'क्षत्रिय'की डिग्री,
    3-जो बानिज्य-व्यापार की शिक्षा प्राप्त करते उन्हें'बणिक'की डिग्री ,
    4-जो बाकी समस्त सेवाओं से संबन्धित शिक्षा प्राप्त करते उन्हें 'शूद्र'की डिग्री मिलती थी और उसी के अनुसार वे लोग कर्म करते थे। यह शिक्षा और कर्म के अनुसार था जिसे ब्राह्मणों ने जन्म और जाती मे परिवर्तित कर दिया है ।
    कायस्थ जो इन चारों से ऊपर था उसके ऊपर ये ढ़ोंगी ब्राह्मण थुप गए हैं । कायस्थ क्यों ब्राह्मणवादी व्यवस्था को कुबूल किए हैं ?

    ,
    ‘चित्रगुप्त ‘कोई व्यक्ति विशेष नहीं है और न ही यह ब्रह्मा जी की काया से उत्पन्न है जैसा कि ब्राह्मणों ने बहका रखा है । ‘मनुष्य’ जितने कर्म –सदकर्म,अकर्म और दुष्कर्म करता है उनका लेखा-जोखा उसके मस्तिष्क पर गुप्त रूप से अंकित होता रहता है। यही मन या चित्त पर गुप्त रूप से अंकन ही ‘चित्रगुप्त’ है । ‘कायस्थ’ चारों वर्णों से ऊपर है । बारह कायस्थ का अर्थ बारह राशियों से है । न कोई छोटा है न कोई बड़ा है । सब बराबर हैं । क्योंकि ब्रह्मांड चक्राकार या गोलाकार है उसमे कौन आगे है कौन पीछे ?इसका कोई प्रश्न ही नहीं है । चूंकि ज़्यादातर लोग ब्राह्मणवादी व्यवस्था के गुलाम हैं ,इसलिए ऊंच-नीच के भेद मे फँसते हैं ।

    रेखा जी के लेख मे जो चिंता है वह ‘कायस्थ’ की ब्राह्मणवादी व्यवस्था को मानने के कारण है । आर.एस .एस.के जिस विदेशी ब्लागर ने फूट की टिप्पणी की है वही खुद इस फूट का जिम्मेदार है। क्योंकि वह ब्रहमनवादी संघी विचार - धारा जिसे साम्राज्यवादियों ने फूटपरसती हेतु ही सांप्रदायिकता के रूप मे परोसा इस देश की संस्कृति के विरुद्ध है । 31 जूलाई 2011 को ‘क्रांतिस्वर’पर मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती पर लेख मे उनके दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया है प्रेमचंद जी का वही दृष्टिकोण ‘कायस्थ-एकता’को बनाए रख सकता है,संघी दृष्टिकोण नहीं ।

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  2. बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब,बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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