Friday, January 22, 2010

ग़ज़ल --बहुत हैं मन में लेकिन --संजीव 'सलिल'

ग़ज़ल


संजीव 'सलिल'


बहुत हैं मन में लेकिन फिर भी कम अरमान हैं प्यारे.

पुरोहित हौसले हैं मंजिलें जजमान हैं प्यारे..



लिये हम आरसी को आरसी में आरसी देखें.

हमें यह लग रहा है खुद से ही अनजान हैं प्यारे..



तुम्हारे नेह के नाते न कोई तोड़ पायेगा.

दिले-नादां को लगते हिटलरी फरमान हैं प्यारे..



छुरों ने पीठ को घायल किया जब भी तभी देखा-

'सलिल' पर दोस्तों के अनगिनत अहसान हैं प्यारे..



जो दाना होने का दावा रहा करता हमेशा से.

'सलिल' से ज्यादा कोई भी नहीं नादान है प्यारे..



********************************

1 comment:

केवल और केवल विषय आधरित कमेन्ट ही दे यहाँ