Saturday, January 9, 2010

भोजपुरी दोहे: ---आचार्य संजीव 'सलिल'

भोजपुरी दोहे:




आचार्य संजीव 'सलिल'



कइसन होखो कहानी, नहीं साँच को आँच.

कनके संकर सम पूजहिं, ठोकर खाइल कांच..



कतने घाटल के पियल, पानी- बुझल न प्यास.

नेह नरमदा घाट चल, रहल न बाकी आस..



गुन अवगुन कम- अधिक बा, ऊँच न कोइ नीच.

मिहनत श्रम शतदल कमल, मोह-वासना कीच..



नेह-प्रेम पैदा कइल, सहज-सरल बेवहार.

साँझा सुख-दुःख बँट गइल, हर दिन बा तिवहार..



खूबी-खामी से बनल, जिनगी के पिहचान.

धुप-छाँव सम छनिक बा, मन अउर अपमान..



सहारण में जिनगी भयल, कुंठा-दुःख-संत्रास.

केई से मत कहब दुःख, सुन करिहैं उपहास..



फुनवा के आगे पडल, चीठी के रंग फीक.

सायर सिंह सपूत तो, चलल तोड़ हर लीक..



बेर-बेर छटनी क द स, हरदम लूट-खसोट.

दुर्गत भयल मजूर के, लगल चोट पर चोट..



दम नइखे दम के भरम, बिटवा भयल जवान.

एक कम दू खर्च के, ऊँची भरल उडान..



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2 comments:

  1. नेह-प्रेम पैदा कइल, सहज-सरल बेवहार.
    साँझा सुख-दुःख बँट गइल, हर दिन बा तिवहार....
    ...........निक त कुल लाग लकिन इ हमें खूब जमल.

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