Sunday, December 27, 2009

सामयिक दोहे संजीव 'सलिल'

सामयिक दोहे




संजीव 'सलिल'


पत्थर से हर शहर में मिलते मकां हजारों.



मैं ढूंढ-ढूंढ हरा, घर एक नहीं मिलता..



रश्मि रथी की रश्मि के दर्शन कर जग धन्य.



तुम्हीं चन्द्र की ज्योत्सना, सचमुच दिव्य अनन्य..



राज सियारों का हुआ, सिंह का मिटा भविष्य.



लोकतंत्र के यज्ञ में, काबिल हुआ हविष्य..



कहता है इतिहास यह, राक्षस थे बलवान.



जिसने उनको मिटाया, वे सब थे इंसान..



इस राक्षस राठोड का होगा सत्यानाश.



साक्षी होंगे आप-हम, धरती जल आकाश..



नारायण के नाम पर, सचमुच लगा कलंक.



मैली चादर हो गयी, चुभा कुयश का डंक..



फंसे वासना पंक में, श्री नारायण दत्त.



जैसे मरने जा रहा, कीचड में गज मत्त.



कीचड में गज मत्त, लाज क्यों इन्हें न आयी.



कभी उठाई थी चप्पल. अब चप्पल खाई..



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Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

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