Sunday, December 6, 2009

चित्रगुप्त भजन : धन-धन भाग हमारे ---आचार्य संजीव 'सलिल'

धन-धन भाग हमारे
आचार्य संजीव 'सलिल'

धन-धन भाग हमारे, प्रभु द्वारे पधारे।
शरणागत को तारें, प्रभु द्वारे पधारे....
माटी तन, चंचल अंतर्मन, परस हो प्रभु, करदो कंचन।
जनगण नित्य पुकारे, प्रभु द्वारे पधारे....
प्रीत की रीत हमेशा निभायी, लाज भगत की सदा बचाई।
कबहूँ न तनक बिसारे, प्रभु द्वारे पधारे...
मिथ्या जग की तृष्णा-माया, अक्षय प्रभु की अमृत छाया।
मिल जय-जय गुंजा रे, प्रभु द्वारे पधारे...
आस-श्वास सी दोऊ मैया, ममतामय आँचल दे छैंया।
सुत का भाग जगा रे, प्रभु द्वारे पधारे...
नेह नर्मदा संबंधों की, जन्म-जन्म के अनुबंधों की।
नाते 'सलिल' निभा रे, प्रभु द्वारे पधारे...



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2 comments:

  1. धन धन भाग्य तो हमारे हैं जो रोज़ हमे ऐसी सुन्दर अद्भुत रचनायें पढने को मिलती हैं। धन्यवाद और शुभकामनायें

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  2. धन्य भाग हमारे कि ऐसी रचना हम तक आये । धन्यवाद !

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